Friday, February 18, 2022

मुसलामानों में शिक्षा को दीनी एवं दुनयावी कह कर बाँटना कितना सही है?

शिक्षा की लड़ाई में किस की दलील सही है और कौन गलत यह कई दशकों से चली आरही है , इस लड़ाई में एक बड़ा तबका शिक्षा को अपने नज़रिए से दीनी और दुनयावी कह कर एक विशेष समुदाय को ठगने का कार्य कर रहे हैं | परन्तु इस रुढ़िवादी और दकियानूसी सोच को पूरी कौम पर थोपना कितना हानिकारक है इस बाबत इस विशेष समुदाय के लिए चिंता का विषय है | जो लोग एक ईश्वर में यक़ीन रखते हैं, वो मानते हैं की इल्म की रौशनी, इसकी बढ़ोतरी और इसका कम होना ईश्वर के तरफ से है। लेकिन सवाल ये है की अगर इल्म ईश्वर की तरफ से है और ईश्वर एक है तो इल्म आसमान से ज़मीन पर आते आते कहाँ विभाजित हो कर दो हिस्सों में बंट जाती है? इस सवाल पर हम इंसानो को गौर करना चाहिए। 

जब ईश्वर ने बाबा आदम को बनाया और उनको सारी चीज़ों की इल्म सिखाया, और ये बात जन्नत में फरिस्तों की मौजूदगी में हो रही थी, हमारे बाबा आदम अभी जन्नत में ही थे की ईश्वर ने उनको सारी चीज़ों की इल्म सीखा दिया था और उस वक़्त दुनिया का वजूद अभी सामने नहीं आया था, तब फिर ये बात दिमाग में आती है की ईशवर ने हमारे बाबा आदम को कौन सी इल्म सिखाया? गोया इल्म सिखने और सीखने का सिलसिला दुनिया के क़याम में आने से पहले हो गया था और ईश्वर ने सिखाया था, फिर बाबा आदम को दुनिया में भेजा और हम उनके वंशज हैं। 

ऊपर दिए हुए तथ्य से ये साबित होता है की इल्म को विभाजित करना एक मूर्खतापूर्ण कार्य था जिसको हमारे पूर्वजों ने किया और उसका बोझ हमारा आज का समाज आज भी ढ़ोने को विवश है और अपने आप को और अपने क़ौम को गर्त में धकेलने को आतुर है। 

इल्म के विभाजन से पूरी की पूरी क़ौम कंफ्यूज हो गयी। अब इसको पता ही नहीं था कि क़ौम एक साथ क्या करे ? एक तरफ साइंस को दुनियावी इल्म बता कर हमको साइंस और टेक्नोलॉजी से दूर रखा गया और दूसरी तरफ सिर्फ दीनी इल्म हासिल करके हम राकेट या मेडिकल साइंस में तरक्की नहीं कर सकते हैं।  

अर्थशास्त्र पर हमारे पिछड़ेपन का कारण इस ' चार दिवसीय ' जीवन से घृणा है और विज्ञान के मोर्चे पर निर्वाह का कारण विज्ञान को हमारे धर्म का शत्रु मानना है । प्रसिद्ध भौतिकी विद्वान आर्यन रॉक्सबर्ग लिखते हैं, "ब्रह्मांड आश्चर्यजनक रूप से समान है । एक अनुक्रम और संरचना ब्रह्मांड के घटकों में एक अनुपात में पाए जाते हैं। लगभग डेढ़ सदी पहले, कुरान घोषणा करता है कि (1) अल्लाह सब कुछ बनाया है, और फिर सब कुछ (अल furqan) का एक अलग आकलन निर्धारित किया है । (2) और अल्लाह ने सूर्य और चंद्रमा को फिक्स  धुरी पर बना दिया है, हर एक सही समय (अल-राड) पर चलता है। 

धर्म और विज्ञान के बीच कोई प्रतिस्पर्धा और कोई संघर्ष नहीं है । हाँ लेकिन कुछ लोगों ने साइंस और धर्म को लड़ाने का काम ज़रूर किया है ! जबकि हकीकत ये है की धर्म पुरे क़ायनात की बात करता है और साइंस उस कायनात के एक छोटे हिस्से में बसे ग्रह पर छिपी हुयी चीज़ों को ढूंढने का काम करता है! दोनों की तुलना एक महान मूर्खता है!

अब हमारी गिरावट के कारणों को सुनिए । इब्न खालिदुन दुनिया के सबसे प्रमुख इतिहासकारों में से एक हैं। उन्होंने अपने प्रसिद्ध इतिहास के मामले में लिखा, हमने सुना है कि भूमध्य सागर के उत्तरी तटीय क्षेत्रों फ्रांगी का देश चिकित्सा और विज्ञान की बात है, लेकिन हम जानते हैं कि चिकित्सा की समस्याएं हमारे धार्मिक मामलों का क्षेत्र नहीं हैं और इनका कोई महत्व नहीं है, इसलिए इन विज्ञानों से दूर रहना बेहतर है ।

दुर्भाग्य से, यह रवैया तब भी जारी रहा जब इस्लाम की दुनिया में प्रमुख इस्लामी साम्राज्य जैसे तुर्क साम्राज्य, ईरानी और भारत में मुगल साम्राज्य स्थापित किए गए थे। ऐसा नहीं था कि हमारे वे सुल्तान पश्चिम में विज्ञान के विकास से अनजान थे, उन्हें पुर्तगाली कौशल, शिपिंग और जहाज निर्माण की भी जानकारी थी, लेकिन उनकी प्राथमिकताएं अलग रहीं। उन्हें यह भी पता नहीं था कि पुर्तगालियों को कम से कम हज से समुद्री मार्गों का पता लगाने के लिए शिपिंग और जहाज निर्माण का उपयोग करना चाहिए। यह एक और बात है कि पुर्तगाल के राजा हेनरी रण, कोलंबस, और वास्कोडिगामा को समुद्र में उतरा जबकि कम्पास अरब का आविष्कार किया गया है!

इस संबंध में हमें इस बात का भी अफसोस है कि कई गैर मुस्लिम भाइयों ने अपने मन में यह स्पष्ट कर दिया है कि मुसलमान विज्ञान के क्षेत्र में पिछड़ गए हैं क्योंकि उनका धर्म विज्ञान शिक्षा के खिलाफ है या कम से कम पसंद नहीं है, लेकिन तथ्यों के अनुरूप ऐसा नहीं है। दरअसल, इस्लाम की नजर में ब्रह्मांड का अध्ययन करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह रचनाकार (ईश्वर) के ज्ञान का स्रोत है।

हमारा मानना है की इल्म एक ही है और इसका दीनी और दुनियावी इल्म में विभाजन मूर्खतापूर्ण रवईया है। 

इल्म कोई भी हासिल करें लेकिन इल्म के बारे में जो इख़लाक़ी हिदायत पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहेब ने दिया है उसका अनुकरण करें।  पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहेब ने मानवता को फायदा पहुँचाने वाली इल्म हासिल करने की हिदायत दिया है ना की दीनी या दुनियावी इल्म की।