Tuesday, November 28, 2017

रोहिंगया समस्या और भारत के मुसलमान – दलित गठजोड़

रोहिंगया समस्या और भारत के मुसलमान – दलित गठजोड़

मेरे प्यारे भाइयों, हिन्दुस्तान में सियासत अपने नफ़रत के उफान पर है! आज जो भी सियासी ताक़तें अभी हुकूमत में हैं ये बात कहने की नही है कि वो नफ़रत और खास तौर पर मुसलमानो से नफ़रत के बल बूते पर हुकूमत में आयें हैं! ये ताक़तें हिंदू समाज की अगड़ी जातियाँ हैं जो हिन्दुत्व के नाम पर ब्राह्मणवाद को स्थापित करना चाहती हैं! ब्राह्मणवाद का एक सबसे बड़ा नमूना प्रधानमंत्री कार्यालय है जहाँ 90% से ज़्यादह ब्राह्मण जाती के लोग कार्यरत हैं, बाकी हिंदू जातियाँ इस सामाजिक न्याय के बराबरी के अधिकार से वंचित हैं!


हाल ही की घटना है जब ऊना गुजरात में जब ब्राह्माणवादी ताक़तो ने दलित बिरादरी के लोगों (खास तौर से नौजवान) की  सरेआम पिटाई किया. इस निर्दयी घटना के बाद, गुजरात में दलित भाइयों का इस बर्बरता के खिलाफ धरना और प्रदर्शन शुरू हो गया.  इस ना इंसाफी को देखते हुए, ऊना के मुसलमान भी प्रदर्शन में दलित भाइयों के साथ हो गये!

ये इस बात का संदेश था कि दो समुदाये जिन पर आज सबसे ज़्यादह नाइंसाफी हो रही है, वो एक साथ आ कर एक सियासी ताक़त बनने लगे! इस घटना को देखते हुए संघ परिवार के लोग चिंतित हो गये क्यौन्कि मुसलमान और दलित समुदाये भारत के 45% जनसंख्या बनते हैं और ये ताक़त किसी भी सियासी जमात को मात देने की क़ाबलियत रखते हैं और सत्ता पर क़ाबिज़ हो सकते हैं!

हिन्दुस्तान में सामाजिक बराबरी की लड़ाई दलित समाज सैकड़ों सालों से कर रहा है, ये बात किसी से छिपी नही है और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने यही सामाजिक बराबरी की लड़ाई को आगे बढ़ाया और संविधान से द्वारा बराबरी दिलाई! लेकिन इन सबके बावजूद जब दलित समाज को हमारे हिन्दुस्तान का  समाज जब समान अधिकार नही देता तो ये देखा गया है कि दलित समाज के लोग बौध धर्म अपना लेते हैं!
आज हम गौर करें तो ये पाएँगे कि एक भारत में अधिकांश बौध धर्म के अनुयायी पहले दलित समाज में थे, जो ब्राह्माणवाद के सामाजिक हिंसा के कारण हिंदू धर्म छोड़ कर बौध धर्म अपना लिए!

रोहिंगया: रोहिंगया मुसलमानो के विस्थापन का मामला आज से नही चल रहा है, बर्मा सरकार ने 1982 में एक नागरिकता का क़ानून पास कर उनको नागरिकता के अधिकार से वंचित कर दिया और 2013 में जब नरेन्द्रा मोदी की सरकार नही थी तब युनाइटेड नेशन्स ने एक बयान दिया कि रोहिंगया लोग ऐसे लोग हैं जो दुनिया के इतिहास में उनको सबसे ज़्यादह मारा गया!

इन सबको जानते हुए, हमारे प्रधान मंत्री बर्मा जाते हैं और वहाँ उनको ज़बरदस्त सम्मान मिलता है फिर तीन दिन तक रहते हैं, इस तरह सारा हिंदोस्तान तीन दिन तक बर्मा में हो रहे बात चित और बदलाव पर नज़र रखता है. इस वक़्त सारी दुनिया के लिए रोहिंगया विस्थापन एक बड़ा समस्या है लेकिन हमारे प्रधान मंत्री विस्थापित रोहिंगया के बारे में कोई बात नही करते, वहाँ से उनका एक अजीब सा ब्यान आता है कि बर्मा को आतंकवाद से लड़ने में भारत उसका साथ देगा! इस बात से उन्हों ने खास तौर से दो बातों का इशारा किया,

1. चूकि बर्मा में मरने वाले ज़्यादहतर मुसलमान हैं, (थोड़े हिंदू हैं), इससे हिन्दुस्तान के हिंदू रास्ट्रवादी लोगों को खुश किया गया कि हमारा पॉलिसी बदला नही वो अभी भी मुसलमान के खिलाफ है जो गुजरात से शुरू हुआ था! इससे भग्त और खुश होंगे और भाजपा का आधार टूटेगा नही और नफ़रत की राजनीति चलती रहेगी!

2. दूसरा जो सबसे बड़ा सेयासी फ़ायदा उठाया है हमारे प्रधान मंत्री जी ने वो ये है की बर्मा की लड़ाई को हिन्दुस्तान मे मुस्लिम और बौध धर्म मानने वालों के बीच कर दिया है! और आपने सोशियल मीडीया में देखा होगा कि जो भग्त हैं वो रोहिंगया के खिलाफ बोल रहे हैं और बर्मा सरकार के सपोर्ट में, और ये डिबेट इतना इनटेन्स हो रहा है की जो पहले से एक न्यूट्रल सा धर्म बौध अब उसके मानने वाले मुसलमानो के खिलाफ बोलने लगे हैं! इस तरह से ऊना से उठी हुई दलित और मुस्लिम समाज की सियासी गठजोड़ अब कमज़ोर होती हुई नज़र आ रही है!

मुस्लिम और दलित समाज या फिर भारत में रहने वाले बौध समाज के लोगों को चाहिए कि रोहिंगया का मसला एक राजनीतिक मसला है जिसमें मानवाधिकार का हनन हो रहा है और मानवाधिकार हनन के खिलाफ हम सब लोगों को एकजुट हो कर खड़ा होना चाहिए बिना ये सोन्चे हुए कि हम किस धर्म से हैं! इस पूरी घटना को जिस तरह से मुस्लिम और बौध में संप्रदायिक विभाजन हुया है उसमें सबसे ज़्यादह नुकसान हिन्दुस्तान के मुसलमान और दलित समाज का है और सबसे ज़्यादह लाभ संघ परिवार को है! संघ की सांप्रदायिकरण की राजनीति को और ज़्यादह बल मिला है!

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