लीडरशिप और हिंदोस्तानी मुसलमान
हमने अक्सर मुसलमानो की आपस की बात चीत में ये कहते हुए पाया है की मुसलमानो के बीच एक अच्छे लीडरशिप की कमी है! मैं इस बात से पूरी तरह इतेफ़ाक़ नही रखता! हाँ ये बात सही है की हमारी तंग नज़री हमारे अंदर एक अच्छी लीडरशिप को पैदा नही होने देता! अब सवाल है की लीडर / स्पीकर्स / रहनुमा कहाँ पैदा होते हैं? एक सहज सा जवाब है की हमारे तालीमि इदारे ही लीडर पैदा करते हैं! आज मैं आप से दो महान सख्सियत की बात करना चाहूँगा, 1. सर सैयद अहमद ख़ान और 2. सर अल्लामा इक़बाल.
दोनो हज़रात ने मुसलमानो की तालीमी बेदारि पर बहुत ज़ोर दिया! आख़िर वक़्त में सर सैयद अहमद ख़ान ने मुसलमानो को खताब करते हुए कहते हैं की "अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की बुनियाद डालते वक़्त मुझे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा, लोगों ने जीना मुश्क़िल कर दिया था, गालियाँ देते थे लेकिन मैं अपनी ज़िद्द पर / अपने डिटर्मिनेशन पर अडिग था! इस पूरे काम में मेरे बाल ऊड गये, मेरी आँखों की रोशनी चली गयी, लेकिन मेरी दूर दृष्टि / नज़र को खोया नही! मेरी नज़र कभी धुंधली नही पड़ी! मैं ने अपने डिटर्मिनेशन को कभी कम नही होने दिया! मैं ने आप लोगों के लिए एक इदारा बनाया, और मुझे पूरा यक़ीन है की आप लोग इस इल्म की रोशनी को बहुत दूर तक ले जाएँगे की चारों तरफ का अंधेरा ख़त्म हो जाए!
अब हम सर सैयद अहमद ख़ान के बात पर गौर करें तो हम ये पाएँगे की लगभग 120 साल के वफात के बाद भी हम ने उनकी ख्वाब को पूरा नही किया! 120 साल का वक़फा बहुत ज़्यादा होता है किसी भी क़ौम के तक़दीर को बदलने के लिए! अगर ठीक से मेहनत किया जाए तो किसी भी क़ौम की तक़दीर को 30 से 40 साल में बदला जा सकता है शर्त ये है की अपने डिटर्मिनेशन पर अडिग रहा जाए!
चलिए मैं आपको एक जीता जागता मिशाल देता हूँ, आर. एस. एस. की बुनियाद 1925 में रखी गयी, और आज 90 साल से कम वक़्त में आर. एस. एस. हिन्दुस्तान के हर पड़े उहदे पर पहुँच गयी. प्रधान मंत्री से लेकर प्रेसीडेंट आंड वाइस प्रेसीडेंट तक. एक तरह से पूरा लेजिस्लेटिव आंड जुडीसीयारी आर. एस. एस. के क़ब्ज़े में है! ये होती है मेहनत! और ये लोग भी एजुकेशन / तालीम पर मेहनत करके आगे बढ़े. एक से एक स्कूल जैसे, सिशु मंदिर, विद्या मंदिर, डी. ए. वी. कॉलेज इत्यादि.
एक बार दुबारा सर सैयद अहद के मेसेज पर ध्यान देते हैं, उन्हो ने 120 साल पहले तालीम के अहमियत के बारे में जो मिशन बनाया था क्या हम सही तौर से आगे लेके बढ़ पाए? जवाब है नही! फिर क्या वजह है की हम सर सैयद के फ़िक़र को एक मिशन नही बना पाए? इसमें कौन सी दूसरी लीडरशिप की ज़रूरत थी? हम लोगों में ग्राउंड लेवेल पर आक्टिविज़म नही है!
मिशन की बात हर एक फर्द के पास नही पहुँच पता और हम में कोई इस बात की तहक़ीक़ की ज़िम्मेदारी भी नही लेता की बात हर फर्द तक पहुँच पाई या नही!
एक बड़ा तालिमि नुक़सान मुसलमानो का तब हुआ जब इन्ही के एक गिरोह ने एक नयी बिदत की शुरुआत की जब इन्हों ने तालीम को 2 भाग में तक़सिम कर दिया, एक दिनी तालीम और दूसरी दुनियावी तालीम!
एक करेला दूजे नीम चड़ा! एक तो तालीम की पहले से कमी थी दूसरी इसमें भी बँटवारा! बँटवारा तो शैतान का काम है और इसकी सनद कहीं से मिलती ही नही की इल्म दो तरह की है! अब हाल ये हो गया है, दिनी तालीम के मुफककीर दुनियावी तालीम को हेच निगाह से देखते और इसकी बुराई करते हैं और जो अवाम दुनियावी तालीम के लिए अपने बच्चों को भेजते, दिनी तालीम के निगहबानो की बातों को अनदेखा कर देते हुए खामोश रहते! अब दोनो अलग अलग रह पर हैं! जहाँ तक मेरा ख़याल है की कोई भी इल्म अगर वो अल्लाह के रज़ा के लिए है तो दिन है और अगर आलिम ही है लेकिन अल्लाह के रज़ा के लिए काम नही करता तो ना वो दिन के लिए ना दुनिया के लिए! हम लोगों इल्म को एक और मज़बूत रखना होगा और मंशा सिर्फ़ अल्लाह को राज़ी करना हो चाहे डॉक्टर बन के हो, इंजिनियर या आलिम बनके हो!
इल्म ही है जो आपको आगे ले जाएगा. अल्लाह ने आदम अ. को नबातात के इल्म सिखाए, दाऊद अ. को लोहा से हथियार बनाना सिखाया! क्या आज हम अपने तालीमि इदारों में ऐसा कोई रिसर्च और डेवेलपमेंट का कोई यूनिट बनाया है? अगर हाँ तो उनकी तादाद कितनी है? तालीम, गौर और फ़िक़र ही एक हल है!
अल्लामा इक़बाल तालीम के बारे में क्या कहते हैं?
इस दौर में तालीम है अमराज़-ए-मिल्लत की दवा..
(In this age education is the cure for nations’ maladies)
है खून-ए-फसिद के लिए, तालीम मिस्ल-ए-नशेतर..
(Education is like a lancet for the diseased blood”)
रह्बर के अएमा से हुवा तालीम का सौदा मुझे..
(By the leader’s suggestions love of education developed in me)
वाजिब है सेहरा-गर्द पर तामील-ए-फरमान-ए-खीज़र्..
(Obeying the command of Khidar is incumbent on the wanderer of the wilderness)
उपर की बातों में हमें पूरी रहनुमाई मिलती है की कहाँ काम करना है, बस ज़रूरत है एक अहद की और उस अहद पर 20 साल तक सब्र करते हुए अम्ल करने की इन शा अल्लाह! और तुम एक बार अहद कर लो फिर उससे अपने पैर को पीछे मत खिँचो, देखना अल्लाह की मदद ज़रूर आएगी और उसी का वादा संच्चा है!
हमने अक्सर मुसलमानो की आपस की बात चीत में ये कहते हुए पाया है की मुसलमानो के बीच एक अच्छे लीडरशिप की कमी है! मैं इस बात से पूरी तरह इतेफ़ाक़ नही रखता! हाँ ये बात सही है की हमारी तंग नज़री हमारे अंदर एक अच्छी लीडरशिप को पैदा नही होने देता! अब सवाल है की लीडर / स्पीकर्स / रहनुमा कहाँ पैदा होते हैं? एक सहज सा जवाब है की हमारे तालीमि इदारे ही लीडर पैदा करते हैं! आज मैं आप से दो महान सख्सियत की बात करना चाहूँगा, 1. सर सैयद अहमद ख़ान और 2. सर अल्लामा इक़बाल.
दोनो हज़रात ने मुसलमानो की तालीमी बेदारि पर बहुत ज़ोर दिया! आख़िर वक़्त में सर सैयद अहमद ख़ान ने मुसलमानो को खताब करते हुए कहते हैं की "अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की बुनियाद डालते वक़्त मुझे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा, लोगों ने जीना मुश्क़िल कर दिया था, गालियाँ देते थे लेकिन मैं अपनी ज़िद्द पर / अपने डिटर्मिनेशन पर अडिग था! इस पूरे काम में मेरे बाल ऊड गये, मेरी आँखों की रोशनी चली गयी, लेकिन मेरी दूर दृष्टि / नज़र को खोया नही! मेरी नज़र कभी धुंधली नही पड़ी! मैं ने अपने डिटर्मिनेशन को कभी कम नही होने दिया! मैं ने आप लोगों के लिए एक इदारा बनाया, और मुझे पूरा यक़ीन है की आप लोग इस इल्म की रोशनी को बहुत दूर तक ले जाएँगे की चारों तरफ का अंधेरा ख़त्म हो जाए!
अब हम सर सैयद अहमद ख़ान के बात पर गौर करें तो हम ये पाएँगे की लगभग 120 साल के वफात के बाद भी हम ने उनकी ख्वाब को पूरा नही किया! 120 साल का वक़फा बहुत ज़्यादा होता है किसी भी क़ौम के तक़दीर को बदलने के लिए! अगर ठीक से मेहनत किया जाए तो किसी भी क़ौम की तक़दीर को 30 से 40 साल में बदला जा सकता है शर्त ये है की अपने डिटर्मिनेशन पर अडिग रहा जाए!
चलिए मैं आपको एक जीता जागता मिशाल देता हूँ, आर. एस. एस. की बुनियाद 1925 में रखी गयी, और आज 90 साल से कम वक़्त में आर. एस. एस. हिन्दुस्तान के हर पड़े उहदे पर पहुँच गयी. प्रधान मंत्री से लेकर प्रेसीडेंट आंड वाइस प्रेसीडेंट तक. एक तरह से पूरा लेजिस्लेटिव आंड जुडीसीयारी आर. एस. एस. के क़ब्ज़े में है! ये होती है मेहनत! और ये लोग भी एजुकेशन / तालीम पर मेहनत करके आगे बढ़े. एक से एक स्कूल जैसे, सिशु मंदिर, विद्या मंदिर, डी. ए. वी. कॉलेज इत्यादि.
एक बार दुबारा सर सैयद अहद के मेसेज पर ध्यान देते हैं, उन्हो ने 120 साल पहले तालीम के अहमियत के बारे में जो मिशन बनाया था क्या हम सही तौर से आगे लेके बढ़ पाए? जवाब है नही! फिर क्या वजह है की हम सर सैयद के फ़िक़र को एक मिशन नही बना पाए? इसमें कौन सी दूसरी लीडरशिप की ज़रूरत थी? हम लोगों में ग्राउंड लेवेल पर आक्टिविज़म नही है!
मिशन की बात हर एक फर्द के पास नही पहुँच पता और हम में कोई इस बात की तहक़ीक़ की ज़िम्मेदारी भी नही लेता की बात हर फर्द तक पहुँच पाई या नही!
एक बड़ा तालिमि नुक़सान मुसलमानो का तब हुआ जब इन्ही के एक गिरोह ने एक नयी बिदत की शुरुआत की जब इन्हों ने तालीम को 2 भाग में तक़सिम कर दिया, एक दिनी तालीम और दूसरी दुनियावी तालीम!
एक करेला दूजे नीम चड़ा! एक तो तालीम की पहले से कमी थी दूसरी इसमें भी बँटवारा! बँटवारा तो शैतान का काम है और इसकी सनद कहीं से मिलती ही नही की इल्म दो तरह की है! अब हाल ये हो गया है, दिनी तालीम के मुफककीर दुनियावी तालीम को हेच निगाह से देखते और इसकी बुराई करते हैं और जो अवाम दुनियावी तालीम के लिए अपने बच्चों को भेजते, दिनी तालीम के निगहबानो की बातों को अनदेखा कर देते हुए खामोश रहते! अब दोनो अलग अलग रह पर हैं! जहाँ तक मेरा ख़याल है की कोई भी इल्म अगर वो अल्लाह के रज़ा के लिए है तो दिन है और अगर आलिम ही है लेकिन अल्लाह के रज़ा के लिए काम नही करता तो ना वो दिन के लिए ना दुनिया के लिए! हम लोगों इल्म को एक और मज़बूत रखना होगा और मंशा सिर्फ़ अल्लाह को राज़ी करना हो चाहे डॉक्टर बन के हो, इंजिनियर या आलिम बनके हो!
इल्म ही है जो आपको आगे ले जाएगा. अल्लाह ने आदम अ. को नबातात के इल्म सिखाए, दाऊद अ. को लोहा से हथियार बनाना सिखाया! क्या आज हम अपने तालीमि इदारों में ऐसा कोई रिसर्च और डेवेलपमेंट का कोई यूनिट बनाया है? अगर हाँ तो उनकी तादाद कितनी है? तालीम, गौर और फ़िक़र ही एक हल है!
अल्लामा इक़बाल तालीम के बारे में क्या कहते हैं?
इस दौर में तालीम है अमराज़-ए-मिल्लत की दवा..
(In this age education is the cure for nations’ maladies)
है खून-ए-फसिद के लिए, तालीम मिस्ल-ए-नशेतर..
(Education is like a lancet for the diseased blood”)
रह्बर के अएमा से हुवा तालीम का सौदा मुझे..
(By the leader’s suggestions love of education developed in me)
वाजिब है सेहरा-गर्द पर तामील-ए-फरमान-ए-खीज़र्..
(Obeying the command of Khidar is incumbent on the wanderer of the wilderness)
उपर की बातों में हमें पूरी रहनुमाई मिलती है की कहाँ काम करना है, बस ज़रूरत है एक अहद की और उस अहद पर 20 साल तक सब्र करते हुए अम्ल करने की इन शा अल्लाह! और तुम एक बार अहद कर लो फिर उससे अपने पैर को पीछे मत खिँचो, देखना अल्लाह की मदद ज़रूर आएगी और उसी का वादा संच्चा है!
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