Saturday, December 9, 2017

फेक या उल्लू बनाने वाले न्यूज़ से कैसे बचें? How to Avoid Fake News

ईश्वर अपने पवित्र किताब मे फरमाता है क़ी अये ईमान वालों जब तुम अल्लाह के राह में निकलो तो खूब छान बिन या तहक़ीक़ कर लिया करो और जब तुम कोई खब्र किसी ऐसे आदमी से सुनो जिसका कॅरक्टर या चाल चलन ठीक नही हो या वो झूठ बोलता हो तो खूब थोक बजा के तहक़ीक़ और तस्दीक़ कर लिया करो. कहीं ऐसा ना हो की तुम जहालत में किसी के साथ नाइंसाफी कर बैठो और बाद में अपने किए पर पछताते रहो!

अब हम इंटरनेट और फोटॉशप की दुन्या की बात करते हैं जहाँ न्यूज़ बनती नही बनाई जाती है! इसके पीछे ये मक़सद होता है;

1. उल्लू बना के अपना उल्लू सीधा करना

2. एक बादल सा धुँधला सीन बनाना जिसमें आप उलझ जायें और जो इस काम में लगे हुए हैं वो आसनी से अपनी घिनौनी हरकत को अंजाम दे सकें! इसके लिए अँग्रेज़ी का एक शब्द फॉगिंग भी इस्तेमाल होता है!

3. ज़्यादह तर ये काम सरकारें या कोई संस्था या कोई लोमड़ी जैसा चतुर आदमी करता है की वो शॉर्ट टर्म में अपना लोंग टर्म गोल कैसे पूरा करे!


4. फेक न्यूज़ हमेशा से एक सोनची समझी साजिश के तहत बनाया जाता है!

आपको मालूम है की एक वेबसाइट (https://jaagoindian.org/ayodhya/) जो अयौध्या में राम मंदिर बने या मस्जिद बने उसपे सर्वे करा रही है, छान बिन से ये पता चला की वो एक फेक वेबसाइट है और उस पर 4 करोर लोगों ने वोट किया जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनो शामिल हैं. ये कितने अफ़सोस की बात है की लोगों को उल्लू बनाना कितना आसान हो गया!

अब आपको खुद से पूछना है की क्या आप किसी फेक न्यूज़ की मुनाफकत के शिकार तो नही हो रहे हैं? क्या आप फेक न्यूज़ आगे फॉर्वर्ड / बढ़ाने से पहले सोंच रहे हैं की क्या मैं एक बार इस न्यूज़ की छान बिन कर लूँ? अगर नही तो आप उल्लू बनने वालों से क़तार में शामिल हैं लेकिन आपको नही मालूम की आपने उससे अपना ही नुकसान किया. चाहे वो फ़ेसबुक हो या व्हातसपप या ट्वीटर.

अब मसला है की मुनाफकत की इस दौर में जहाँ जहालत आसानी से एक क्लिक में हज़ारों मिल की दूरी पूरी कर लेती है, इससे बचा कैसे जाए?

इस उल्लू बनाने वाली न्यूज़ बचने के लिए सबसे पहला काम है अपने लेवेल पर सोचना की ये न्यूज़ सही है या नही. उसके बाद की कहानी ये है की हमारे जैसे बहुत सारे लोग हैं जो फेक न्यूज़ से परेशान हैं वो हिंदू भी हैं वो मुसलमान भी है वो सिख भी हैं और ईसाई भी हैं! और ये बात भी ध्यान में रहे की फेक न्यूज़ भेजने वाला भी किसी भी धर्म का हो सकता है!

सारी दुन्या में फेक न्यूज़ का बिज़्नेस चल रहा है! नीचे देखिए कैसे इनको विकिपेडिया ने लिस्ट किया है.
https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_fake_news_websites

हिंदोस्तान में भी सोशियल मीडीया में फेक न्यूज़ का भंडार है और ये ज़्यादह तर फोटॉशप के द्वारा होता है!
http://www.dw.com/en/how-fake-news-is-widening-social-rifts-in-india/a-40875997

पोस्टकार्ड न्यूज़ एक नयी कहानी या नया न्यूज़ बनाने का ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल है, ये लोग इतने माहिर हैं की आपको एक बार में मुश्किल से लगेगा की ये न्यूज़ फेक है! ये न्यूज़ पोर्टल आर. एस. एस. के लिए काम करता है!
http://postcard.news/

कुछ वेसाइट्स भी है जो सही और ग़लत खबरों में फ़र्क़ करने में मदद केरती हैं;
https://www.snopes.com/about-snopes/

आइए हम ये अहद करें की फेक न्यूज़ को विराम दें और हिंदोस्ताँ की सरकार से माँग करें की ऐसी लॉ बनाए जिसमें कोई भी न्यूज़ चॅनेल पहले रीले करने से पहले उसको वेरिफाइ करे और हम अपने स्तर पर तहक़ीक़ करें और उसके बाद अपनी राय बनायें! इसी तरह एक बेहतर समाज बना सकते हैं!

गौरी लंकेश का आख़िरी संपादकीय हिन्दी में

गौरी लंकेश..

गौरी लंकेश नाम है पत्रिका का। 16 पन्नों की यह पत्रिका हर हफ्ते निकलती है। 15 रुपये कीमत होती है। 13 सितंबर का अंक गौरी लंकेश के लिए आख़िरी साबित हुआ। हमने अपने मित्र की मदद से उनके आख़िरी संपादकीय का हिन्दी में अनुवाद किया है ताकि आपको पता चल सके कि कन्नडा में लिखने वाली इस पत्रकार की लिखावट कैसी थी, उसकी धार कैसी थी। हर अंक में गौरी ‘कंडा हागे’ नाम से कालम लिखती थीं। कंडा हागे का मतलब होता है जैसा मैने देखा। उनका संपादकीय पत्रिका के तीसरे पन्ने पर छपता था। इस बार का संपादकीय फेक न्यूज़ पर था और उसका टाइटल था- फेक न्यूज़ के ज़माने में-

इस हफ्ते के इश्यू में मेरे दोस्त डॉ वासु ने गोएबल्स की तरह इंडिया में फेक न्यूज़ बनाने की फैक्ट्री के बारे में लिखा है। झूठ की ऐसी फैक्ट्रियां ज़्यादातर मोदी भक्त ही चलाते हैं। झूठ की फैक्ट्री से जो नुकसान हो रहा है मैं उसके बारे में अपने संपादकीय में बताने का प्रयास करूंगी। अभी परसों ही गणेश चतुर्थी थी। उस दिन सोशल मीडिया में एक झूठ फैलाया गया। फैलाने वाले संघ के लोग थे। ये झूठ क्या है? झूठ ये है कि कर्नाटक सरकार जहां बोलेगी वहीं गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करनी है, उसके पहले दस लाख का डिपाज़िट करना होगा, मूर्ति की ऊंचाई कितनी होगी, इसके लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी, दूसरे धर्म के लोग जहां रहते हैं उन रास्तों से विसर्जन के लिए नहीं ले जा सकते हैं। पटाखे वगैरह नहीं छोड़ सकते हैं। संघ के लोगों ने इस झूठ को खूब फैलाया। ये झूठ इतना ज़ोर से फैल गया कि अंत में कर्नाटक के पुलिस प्रमुख आर के दत्ता को प्रेस बुलानी पड़ी और सफाई देनी पड़ी कि सरकार ने ऐसा कोई नियम नहीं बनाया है। ये सब झूठ है।

इस झूठ का सोर्स जब हमने पता करने की कोशिश की तो वो जाकर पहुंचा POSTCARD.IN नाम की वेबसाइट पर। यह वेबसाइट पक्के हिन्दुत्ववादियों की है। इसका काम हर दिन फ़ेक न्यूज़ बनाकर बनाकर सोशल मीडिया में फैलाना है। 11 अगस्त को POSTCARD.IN में एक हेडिंग लगाई गई। कर्नाटक में तालिबान सरकार। इस हेडिंग के सहारे राज्य भर में झूठ फैलाने की कोशिश हुई। संघ के लोग इसमें कामयाब भी हुए। जो लोग किसी न किसी वजह से सिद्धारमैया सरकार से नाराज़ रहते हैं उन लोगों ने इस फ़ेक न्यूज़ को अपना हथियार बना लिया। सबसे आश्चर्य और खेद की बात है कि लोगों ने भी बग़ैर सोचे समझे इसे सही मान लिया। अपने कान, नाक और भेजे का इस्तमाल नहीं किया।

पिछले सप्ताह जब कोर्ट ने राम रहीम नाम के एक ढोंगी बाबा को बलात्कार के मामले में सज़ा सुनाई तब उसके साथ बीजेपी के नेताओं की कई तस्वीरें सोशल मीडिया में वायर होने लगी। इस ढोंगी बाबा के साथ  मोदी के साथ साथ हरियाणा के बीजेपी विधायकों की फोटो और वीडियो वायरल होने लगा। इससे बीजेपी और संघ परिवार परेशान हो गए। इसे काउंटर करने के लिए गुरमीत बाबा के बाज़ू में केरल के सीपीएम के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के बैठे होने की तस्वीर वायरल करा दी गई। यह तस्वीर फोटोशाप थी। असली तस्वीर में कांग्रेस के नेता ओमन चांडी बैठे हैं लेकिन उनके धड़ पर विजयन का सर लगा दिया गया और संघ के लोगों ने इसे सोशल मीडिया में फैला दिया। शुक्र है संघ का यह तरीका कामयाब नहीं हुआ क्योंकि कुछ लोग तुरंत ही इसका ओरिजनल फोटो निकाल लाए और सोशल मीडिया में सच्चाई सामने रख दी।

एक्चुअली पिछले साल तक राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के फ़ेक न्यूज़ प्रोपेगैंडा को रोकने या सामने लाने वाला कोई नहीं था। अब बहुत से लोग इस तरह के काम में जुट गए हैं, जो कि अच्छी बात है। पहले इस तरह के फ़ेक न्यूज़ ही चलती रहती थी लेकिन अब फ़ेक न्यूज़ के साथ साथ असली न्यूज़ भी आनी शुरू हो गए हैं और लोग पढ़ भी रहे हैं।

उदाहरण के लिए 15 अगस्त के दिन जब लाल क़िले से प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण दिया तो उसका एक विश्लेषण 17 अगस्त को ख़ूब वायरल हुआ। ध्रुव राठी ने उसका विश्लेषण किया था। ध्रुव राठी देखने में तो कालेज के लड़के जैसा है लेकिन वो पिछले कई महीनों से मोदी के झूठ की पोल सोशल मीडिया में खोल देता है। पहले ये वीडियो हम जैसे लोगों को ही दिख रहा था,आम आदमी तक नहीं पहुंच रहा था लेकिन 17 अगस्ता के वीडियो एक दिन में एक लाख से ज़्यादा लोगों तक पहुंच गया। ( गौरी लंकेश अक्सर मोदी को बूसी बसिया लिखा करती थीं जिसका मतलब है जब भी मुंह खोलेंगे झूठ ही बोलेंगे)। ध्रुव राठी ने बताया कि राज्य सभा में ‘बूसी बसिया’ की सरकार ने राज्य सभा में महीना भर पहले कहा कि 33 लाख नए करदाता आए हैं। उससे भी पहले वित्त मंत्री जेटली ने 91 लाख नए करदाताओं के जुड़ने की बात कही थी। अंत में आर्थिक सर्वे में कहा गया कि सिर्फ 5 लाख 40 हज़ार नए करदाता जुड़े हैं। तो इसमें कौन सा सच है, यही सवाल ध्रुव राठी ने अपने वीडियो में उठाया है।

आज की मेनस्ट्रीम मीडिया केंद्र सरकार और बीजेपी के दिए आंकड़ों को जस का तस वेद वाक्य की तरह फैलाती रहती है। मेन स्ट्रीम मीडिया के लिए सरकार का बोला हुआ वेद वाक्य हो गया है। उसमें भी जो टीवी न्यूज चैनल हैं, वो इस काम में दस कदम आगे हैं। उदाहरण के लिए, जब रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली तो उस दिन बहुत सारे अंग्रज़ी टीवी चैनलों ने ख़बर चलाई कि सिर्फ एक घंटे में ट्वीटर पर राष्ट्रपति कोविंद के फोलोअर की संख्या 30 लाख हो गई है। वो चिल्लाते रहे कि 30 लाख बढ़ गया, 30 लाख बढ़ गया। उनका मकसद यह बताना था कि कितने लोग कोविंद को सपोर्ट कर रहे हैं। बहुत से टीवी चैनल आज राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की टीम की तरह हो गए हैं। संघ का ही काम करते हैं। जबकि सच ये था कि उस दिन पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का सरकारी अकाउंट नए राष्ट्रपति के नाम हो गया। जब ये बदलाव हुआ तब राष्ट्रपति भवन के फोलोअर अब कोविंद के फोलोअर हो गए। इसमें एक बात और भी गौर करने वाली ये है कि प्रणब मुखर्जी को भी तीस लाख से भी ज्यादा लोग ट्वीटर पर फोलो करते थे।

आज राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के इस तरह के फैलाए गए फ़ेक न्यूज़ की सच्चाई लाने के लिए बहुत से लोग सामने आ चुके हैं। ध्रुव राठी वीडियो के माध्यम से ये काम कर रहे हैं। प्रतीक सिन्हा altnews.in नाम की वेबसाइट से ये काम कर रहे हैं। होक्स स्लेयर, बूम और फैक्ट चेक नाम की वेबसाइट भी यही काम कर रही है। साथ ही साथ THEWIERE.IN, SCROLL.IN, NEWSLAUNDRY.COM, THEQUINT.COM जैसी वेबसाइट भी सक्रिय हैं। मैंने जिन लोगों ने नाम बताए हैं, उन सभी ने हाल ही में कई फ़ेक न्यूज़ की सच्चाई को उजागर किया है। इनके काम से संघ के लोग काफी परेशान हो गए हैं। इसमें और भी महत्व की बात यह है कि ये लोग पैसे के लिए काम नहीं कर रहे हैं। इनका एक ही मकसद है कि फासिस्ट लोगों के झूठ की फैक्ट्री को लोगों के सामने लाना।

कुछ हफ्ते पहले बंगलुरू में ज़ोरदार बारिश हुई। उस टाइम पर संघ के लोगों ने एक फोटो वायरल कराया। कैप्शन में लिखा था कि नासा ने मंगल ग्रह पर लोगों के चलने का फोटो जारी किया है। बंगलुरू नगरपालिका बीबीएमसी ने बयान दिया कि ये मंगल ग्रह का फोटो नहीं है। संघ का मकसद था, मंगल ग्रह का बताकर बंगलुरू का मज़ाक उड़ाना। जिससे लोग यह समझें कि बंगलुरू में सिद्धारमैया की सरकार ने कोई काम नही किया, यहां के रास्ते खराब हो गए हैं, इस तरह के प्रोपेगैंडा करके झूठी खबर फैलाना संघ का मकसद था। लेकिन ये उनको भारी पड़ गया था क्योंकि ये फोटो बंगलुरू का नहीं, महाराष्ट्र का था, जहां बीजेपी की सरकार है।

हाल ही में पश्चिम बंगाल में जब दंगे हुए तो आर एस एस के लोगों ने दो पोस्टर जारी किए। एक पोस्टर का कैप्शन था, बंगाल जल रहा है, उसमें प्रोपर्टी के जलने की तस्वीर थी। दूसरे फोटो में एक महीला की साड़ी खींची जा रही है और कैप्शन है बंगाल में हिन्दु महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा है। बहुत जल्दी ही इस फोटो का सच सामने आ गया। पहली तस्वीर 2002 के गुजरात दंगों की थी जब मुख्यमंत्री मोदी ही सरकार में थे। दूसरी तस्वीर में भोजपुरी सिनेमा के एक सीन की थी।

सिर्फ आर एस एस ही नहीं बीजेपी के केंद्रीय मंत्री भी ऐसे फ़ेक न्यूज़ फैलाने में माहिर हैं। उदाहरण के लिए, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने फोटो शेयर किया कि जिसमें कुछ लोग तिरंगे में आग लगा रहे थे। फोटो के कैप्शन पर लिखा था गणतंत्र के दिवस हैदराबाद में तिरंगे को आग लगाया जा रहा है। अभी गूगल इमेज सर्च एक नया अप्लिकेशन आया है, उसमें आप किसी भी तस्वीर को डालकर जान सकते हैं कि ये कहां और कब की है। प्रतीक सिन्हा ने यही काम किया और उस अप्लिकेशन के ज़रिये गडकरी के शेयर किए गए फोटो की सच्चाई उजागर कर दी। पता चला कि ये फोटो हैदराबाद का नहीं है। पाकिस्तान का है जहां एक प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन भारत के विरोध में तिरंगे को जला रहा है।

इसी तरह एक टीवी पैनल के डिस्कशन में बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि सरहद पर सैनिकों को तिरंगा लहराने में कितनी मुश्किलें आती हैं, फिर जे एन यू जैसे विश्वविद्यालयों में तिरंगा लहराने में क्या समस्या है। यह सवाप पूछकर संबित ने एक तस्वीर दिखाई। बाद में पता चला कि यह एक मशहूर तस्वीर है मगर इसमें भारतीय नहीं, अमरीकी सैनिक हैं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमरीकी सैनिकों ने जब जापान के एक द्वीप पर क़ब्ज़ा किया तब उन्होंने अपना झंडा लहराया था। मगर फोटोशाप के ज़रिये संबित पात्रा लोगों को चकमा दे रहे थे। लेकिन ये उन्हें काफी भारी पड़ गया। ट्वीटर पर संबित पात्रा का लोगों ने काफी मज़ाक उड़ाया।

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में एक तस्वीर साझा की। लिखा कि भारत 50,000 किलोमीटर रास्तों पर सरकार ने तीस लाख एल ई डी बल्ब लगा दिए हैं। मगर जो तस्वीर उन्होंने लगाई वो फेक निकली। भारत की नहीं, 2009 में जापान की तस्वीर की थी। इसी गोयल ने पहले भी एक ट्वीट किया था कि कोयले की आपूर्ति में सरकार ने 25,900 करोड़ की बचत की है। उस ट्वीट की तस्वीर भी झूठी निकली।

छत्तीसगढ़ के पी डब्ल्यू डी मंत्री राजेश मूणत ने एक ब्रिज का फोटो शेयर किया। अपनी सरकार की कामयाबी बताई। उस ट्वीट को 2000 लाइक मिले। बाद में पता चला कि वो तस्वीर छत्तीसगढ़ की नहीं, वियतनाम की है।

ऐसे फ़ेक न्यूज़ फैलाने में हमारे कर्नाटक के आर एस एस और बीजेपी लीडर भी कुछ कम नहीं हैं। कर्नाटक के सांसद प्रताप सिम्हा ने एक रिपोर्ट शेयर किया, कहा कि ये टाइम्स आफ इंडिय मे आया है। उसकी हेडलाइन ये थी कि हिन्दू लड़की को मुसलमान ने चाकू मारकर हत्या कर दी। दुनिया भर को नैतिकता का ज्ञान देने वाले प्रताप सिम्हा ने सच्चाई जानने की ज़रा भी कोशिश नहीं की। किसी भी अखबार ने इस न्यूज को नहीं छापा था बल्कि फोटोशाप के ज़रिए किसी दूसरे न्यूज़ में हेडलाइन लगा दिया गया था और हिन्दू मुस्लिम रंग दिया गया। इसके लिए टाइम्स आफ इंडिया का नाम इस्तमाल किया गया। जब हंगामा हुआ कि ये तो फ़ेक न्यूज़ है तो सांसद ने डिलिट कर दिया मगर माफी नहीं मांगी। सांप्रादायिक झूठ फैलाने पर कोई पछतावा ज़ाहिर नहीं किया।

जैसा कि मेरे दोस्त वासु ने इस बार के कॉलम में लिखा है, मैंने भी एक बिना समझे एक फ़ेक न्यूज़ शेयर कर दिया। पिछले रविवार पटना की अपनी रैली की तस्वीर लालू यादव ने फोटोशाप करके साझा कर दी। थोड़ी देर में दोस्त शशिधर ने बताया कि ये फोटो फर्ज़ी है। नकली है। मैंने तुरंत हटाया और ग़लती भी मानी। यही नहीं फेक और असली तस्वीर दोनों को एक साथ ट्वीट किया। इस गलती के पीछे सांप्रदियाक रूप से भड़काने या प्रोपेगैंडा करने की मंशा नहीं थी। फासिस्टों के ख़िलाफ़ लोग जमा हो रहे थे, इसका संदेश देना ही मेरा मकसद था। फाइनली, जो भी फ़ेक न्यूज़ को एक्सपोज़ करते हैं, उनको सलाम । मेरी ख़्वाहिश है कि उनकी संख्या और भी ज़्यादा हो।

Tuesday, November 28, 2017

Happy Independence Day India

Happy Independence Day India

🌹🌹As Dr. Bhimrao Ambedkar has quoted Unlike a drop of water which loses its identity when it joins the ocean, man does not lose his being in the society in which he lives. Man's life is independent. He is born not for the development of the society alone, but for the development of his self.

We must remember that independence is not Given but it is being earned and fought back 70 years before by our forefathers. We must continue the struggle of our forefathers to remained independent forever. We need to fight back for our fundamental rights, right to education, right to privacy, right to practice religion as per your believes, right to express what you feel as citizen.

Freedom is when you possess right to ask tough questions to state and state don't corner you using power which is given by you to them as independent citizen of India rather they should reply back to you with solution. Freedom is when you ask the government about prize rise, inflation, killings, terror attacks, road accidents, deaths due to negligence those in power, job security, medical benefits and government listen you and give it back to as per electoral campaign promised.

Else you are in the vicious cycle of changing government every 5 years and who do nothing for you in terms of education and right to live with dignity.

Retrospect, think, analyse that your taxes are being used properly and given back to you in the form of educational institutions? Medical Facilities, Good roads, Connectivity, Security from threats of terrorism? Right to get job without prejudices of caste, religion, region, race, language?

If yes, we are on right track of shaping our nation, if not then think back and continue your struggle to get it. Jai Hind, Jai Bharat, Jai Kisan, Jai Vigyan. Happy Independence day. (Love to every citizen to India and those who were not Indians but supported Indian freedom struggle.) With best Wishes: Masihuddin 🌹🌹💐

(Message on Independence day 15 August 2017)

रोहिंगया समस्या और भारत के मुसलमान – दलित गठजोड़

रोहिंगया समस्या और भारत के मुसलमान – दलित गठजोड़

मेरे प्यारे भाइयों, हिन्दुस्तान में सियासत अपने नफ़रत के उफान पर है! आज जो भी सियासी ताक़तें अभी हुकूमत में हैं ये बात कहने की नही है कि वो नफ़रत और खास तौर पर मुसलमानो से नफ़रत के बल बूते पर हुकूमत में आयें हैं! ये ताक़तें हिंदू समाज की अगड़ी जातियाँ हैं जो हिन्दुत्व के नाम पर ब्राह्मणवाद को स्थापित करना चाहती हैं! ब्राह्मणवाद का एक सबसे बड़ा नमूना प्रधानमंत्री कार्यालय है जहाँ 90% से ज़्यादह ब्राह्मण जाती के लोग कार्यरत हैं, बाकी हिंदू जातियाँ इस सामाजिक न्याय के बराबरी के अधिकार से वंचित हैं!


हाल ही की घटना है जब ऊना गुजरात में जब ब्राह्माणवादी ताक़तो ने दलित बिरादरी के लोगों (खास तौर से नौजवान) की  सरेआम पिटाई किया. इस निर्दयी घटना के बाद, गुजरात में दलित भाइयों का इस बर्बरता के खिलाफ धरना और प्रदर्शन शुरू हो गया.  इस ना इंसाफी को देखते हुए, ऊना के मुसलमान भी प्रदर्शन में दलित भाइयों के साथ हो गये!

ये इस बात का संदेश था कि दो समुदाये जिन पर आज सबसे ज़्यादह नाइंसाफी हो रही है, वो एक साथ आ कर एक सियासी ताक़त बनने लगे! इस घटना को देखते हुए संघ परिवार के लोग चिंतित हो गये क्यौन्कि मुसलमान और दलित समुदाये भारत के 45% जनसंख्या बनते हैं और ये ताक़त किसी भी सियासी जमात को मात देने की क़ाबलियत रखते हैं और सत्ता पर क़ाबिज़ हो सकते हैं!

हिन्दुस्तान में सामाजिक बराबरी की लड़ाई दलित समाज सैकड़ों सालों से कर रहा है, ये बात किसी से छिपी नही है और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने यही सामाजिक बराबरी की लड़ाई को आगे बढ़ाया और संविधान से द्वारा बराबरी दिलाई! लेकिन इन सबके बावजूद जब दलित समाज को हमारे हिन्दुस्तान का  समाज जब समान अधिकार नही देता तो ये देखा गया है कि दलित समाज के लोग बौध धर्म अपना लेते हैं!
आज हम गौर करें तो ये पाएँगे कि एक भारत में अधिकांश बौध धर्म के अनुयायी पहले दलित समाज में थे, जो ब्राह्माणवाद के सामाजिक हिंसा के कारण हिंदू धर्म छोड़ कर बौध धर्म अपना लिए!

रोहिंगया: रोहिंगया मुसलमानो के विस्थापन का मामला आज से नही चल रहा है, बर्मा सरकार ने 1982 में एक नागरिकता का क़ानून पास कर उनको नागरिकता के अधिकार से वंचित कर दिया और 2013 में जब नरेन्द्रा मोदी की सरकार नही थी तब युनाइटेड नेशन्स ने एक बयान दिया कि रोहिंगया लोग ऐसे लोग हैं जो दुनिया के इतिहास में उनको सबसे ज़्यादह मारा गया!

इन सबको जानते हुए, हमारे प्रधान मंत्री बर्मा जाते हैं और वहाँ उनको ज़बरदस्त सम्मान मिलता है फिर तीन दिन तक रहते हैं, इस तरह सारा हिंदोस्तान तीन दिन तक बर्मा में हो रहे बात चित और बदलाव पर नज़र रखता है. इस वक़्त सारी दुनिया के लिए रोहिंगया विस्थापन एक बड़ा समस्या है लेकिन हमारे प्रधान मंत्री विस्थापित रोहिंगया के बारे में कोई बात नही करते, वहाँ से उनका एक अजीब सा ब्यान आता है कि बर्मा को आतंकवाद से लड़ने में भारत उसका साथ देगा! इस बात से उन्हों ने खास तौर से दो बातों का इशारा किया,

1. चूकि बर्मा में मरने वाले ज़्यादहतर मुसलमान हैं, (थोड़े हिंदू हैं), इससे हिन्दुस्तान के हिंदू रास्ट्रवादी लोगों को खुश किया गया कि हमारा पॉलिसी बदला नही वो अभी भी मुसलमान के खिलाफ है जो गुजरात से शुरू हुआ था! इससे भग्त और खुश होंगे और भाजपा का आधार टूटेगा नही और नफ़रत की राजनीति चलती रहेगी!

2. दूसरा जो सबसे बड़ा सेयासी फ़ायदा उठाया है हमारे प्रधान मंत्री जी ने वो ये है की बर्मा की लड़ाई को हिन्दुस्तान मे मुस्लिम और बौध धर्म मानने वालों के बीच कर दिया है! और आपने सोशियल मीडीया में देखा होगा कि जो भग्त हैं वो रोहिंगया के खिलाफ बोल रहे हैं और बर्मा सरकार के सपोर्ट में, और ये डिबेट इतना इनटेन्स हो रहा है की जो पहले से एक न्यूट्रल सा धर्म बौध अब उसके मानने वाले मुसलमानो के खिलाफ बोलने लगे हैं! इस तरह से ऊना से उठी हुई दलित और मुस्लिम समाज की सियासी गठजोड़ अब कमज़ोर होती हुई नज़र आ रही है!

मुस्लिम और दलित समाज या फिर भारत में रहने वाले बौध समाज के लोगों को चाहिए कि रोहिंगया का मसला एक राजनीतिक मसला है जिसमें मानवाधिकार का हनन हो रहा है और मानवाधिकार हनन के खिलाफ हम सब लोगों को एकजुट हो कर खड़ा होना चाहिए बिना ये सोन्चे हुए कि हम किस धर्म से हैं! इस पूरी घटना को जिस तरह से मुस्लिम और बौध में संप्रदायिक विभाजन हुया है उसमें सबसे ज़्यादह नुकसान हिन्दुस्तान के मुसलमान और दलित समाज का है और सबसे ज़्यादह लाभ संघ परिवार को है! संघ की सांप्रदायिकरण की राजनीति को और ज़्यादह बल मिला है!

Leadership and Indian Muslims / लीडरशिप और हिंदोस्तानी मुसलमान

लीडरशिप और हिंदोस्तानी मुसलमान

हमने अक्सर मुसलमानो की आपस की बात चीत में ये कहते हुए पाया है की मुसलमानो के बीच एक अच्छे लीडरशिप की कमी है! मैं इस बात से पूरी तरह इतेफ़ाक़ नही रखता! हाँ ये बात सही है की हमारी तंग नज़री हमारे अंदर एक अच्छी लीडरशिप को पैदा नही होने देता! अब सवाल है की लीडर / स्पीकर्स / रहनुमा कहाँ पैदा होते हैं? एक सहज सा जवाब है की हमारे तालीमि इदारे ही लीडर पैदा करते हैं! आज मैं आप से दो महान सख्सियत की बात करना चाहूँगा, 1. सर सैयद अहमद ख़ान और 2. सर अल्लामा इक़बाल.

दोनो हज़रात ने मुसलमानो की तालीमी बेदारि पर बहुत ज़ोर दिया! आख़िर वक़्त में सर सैयद अहमद ख़ान ने मुसलमानो को खताब करते हुए कहते हैं की "अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की बुनियाद डालते वक़्त मुझे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा, लोगों ने जीना मुश्क़िल कर दिया था, गालियाँ देते थे लेकिन मैं अपनी ज़िद्द पर / अपने डिटर्मिनेशन पर अडिग था! इस पूरे काम में मेरे बाल ऊड गये, मेरी आँखों की रोशनी चली गयी, लेकिन मेरी दूर दृष्टि / नज़र को खोया नही! मेरी नज़र कभी धुंधली नही पड़ी! मैं ने अपने डिटर्मिनेशन को कभी कम नही होने दिया! मैं ने आप लोगों के लिए एक इदारा बनाया, और मुझे पूरा यक़ीन है की आप लोग इस इल्म की रोशनी को बहुत दूर तक ले जाएँगे की चारों तरफ का अंधेरा ख़त्म हो जाए!

अब हम सर सैयद अहमद ख़ान के बात पर गौर करें तो हम ये पाएँगे की लगभग 120 साल के वफात के बाद भी हम ने उनकी ख्वाब को पूरा नही किया! 120 साल का वक़फा बहुत ज़्यादा होता है किसी भी क़ौम के तक़दीर को बदलने के लिए! अगर ठीक से मेहनत किया जाए तो किसी भी क़ौम की तक़दीर को 30 से 40 साल में बदला जा सकता है शर्त ये है की अपने डिटर्मिनेशन पर अडिग रहा जाए!

चलिए मैं आपको एक जीता जागता मिशाल देता हूँ, आर. एस. एस. की बुनियाद 1925 में रखी गयी, और आज 90 साल से कम वक़्त में आर. एस. एस. हिन्दुस्तान के हर पड़े उहदे पर पहुँच गयी. प्रधान मंत्री से लेकर प्रेसीडेंट आंड वाइस प्रेसीडेंट तक. एक तरह से पूरा लेजिस्लेटिव आंड जुडीसीयारी आर. एस. एस. के क़ब्ज़े में है! ये होती है मेहनत! और ये लोग भी एजुकेशन / तालीम पर मेहनत करके आगे बढ़े. एक से एक स्कूल जैसे, सिशु मंदिर, विद्या मंदिर, डी. ए. वी. कॉलेज इत्यादि.

एक बार दुबारा सर सैयद अहद के मेसेज पर ध्यान देते हैं, उन्हो ने 120 साल पहले तालीम के अहमियत के बारे में जो मिशन बनाया था क्या हम सही तौर से आगे लेके बढ़ पाए? जवाब है नही! फिर क्या वजह है की हम सर सैयद के फ़िक़र को एक मिशन नही बना पाए? इसमें कौन सी दूसरी लीडरशिप की ज़रूरत थी? हम लोगों में ग्राउंड लेवेल पर आक्टिविज़म नही है!

मिशन की बात हर एक फर्द के पास नही पहुँच पता और हम में कोई इस बात की तहक़ीक़ की ज़िम्मेदारी भी नही लेता की बात हर फर्द तक पहुँच पाई या नही!

एक बड़ा तालिमि नुक़सान मुसलमानो का तब हुआ जब इन्ही के एक गिरोह ने एक नयी बिदत की शुरुआत की जब इन्हों ने तालीम को 2 भाग में तक़सिम कर दिया, एक दिनी तालीम और दूसरी दुनियावी तालीम!

एक करेला दूजे नीम चड़ा! एक तो तालीम की पहले से कमी थी दूसरी इसमें भी बँटवारा! बँटवारा तो शैतान का काम है और इसकी सनद कहीं से मिलती ही नही की इल्म दो तरह की है! अब हाल ये हो गया है, दिनी तालीम के मुफककीर दुनियावी तालीम को हेच निगाह से देखते और इसकी बुराई करते हैं और जो अवाम दुनियावी तालीम के लिए अपने बच्चों को भेजते, दिनी तालीम के निगहबानो की बातों को अनदेखा कर देते हुए खामोश रहते! अब दोनो अलग अलग रह पर हैं! जहाँ तक मेरा ख़याल है की कोई भी इल्म अगर वो अल्लाह के रज़ा के लिए है तो दिन है और अगर आलिम ही है लेकिन अल्लाह के रज़ा के लिए काम नही करता तो ना वो दिन के लिए ना दुनिया के लिए! हम लोगों इल्म को एक और मज़बूत रखना होगा और मंशा सिर्फ़ अल्लाह को राज़ी करना हो चाहे डॉक्टर बन के हो, इंजिनियर या आलिम बनके हो!

इल्म ही है जो आपको आगे ले जाएगा. अल्लाह ने आदम अ. को नबातात के इल्म सिखाए, दाऊद अ. को लोहा से हथियार बनाना सिखाया! क्या आज हम अपने तालीमि इदारों में ऐसा कोई रिसर्च और डेवेलपमेंट का कोई यूनिट बनाया है? अगर हाँ तो उनकी तादाद कितनी है? तालीम, गौर और फ़िक़र ही एक हल है!

अल्लामा इक़बाल तालीम के बारे में क्या कहते हैं?

इस दौर में तालीम है अमराज़-ए-मिल्लत की दवा..
(In this age education is the cure for nations’ maladies)
है खून-ए-फसिद के लिए, तालीम मिस्ल-ए-नशेतर..
(Education is like a lancet for the diseased blood”)
रह्बर के अएमा से हुवा तालीम का सौदा मुझे..
(By the leader’s suggestions love of education developed in me)
वाजिब है सेहरा-गर्द पर तामील-ए-फरमान-ए-खीज़र्..
(Obeying the command of Khidar is incumbent on the wanderer of the wilderness)

उपर की बातों में हमें पूरी रहनुमाई मिलती है की कहाँ काम करना है, बस ज़रूरत है एक अहद की और उस अहद पर 20 साल तक सब्र करते हुए अम्ल करने की इन शा अल्लाह! और तुम एक बार अहद कर लो फिर उससे अपने पैर को पीछे मत खिँचो, देखना अल्लाह की मदद ज़रूर आएगी और उसी का वादा संच्चा है!