अल्पसंख्यक और दलित क्षेत्रिए पार्टियों को वोट दें!
अगर भारत की संघिये ढांचे पर नज़र डालें तो ये पता चलता है कि भारत की पूरी शक्ति संसद में निहित है! अगर आप २०१४ के आम चुनाव पर प्रतिनिधित्व जाती के आधार पर देखें तो पता चलता है कि भारत के संसद में ४७ प्रतिशत से ज़्यादह लोकसभा के प्रतिनिधि अगड़ी जातियों से आते हैं! मतलब ५४३ में से २५७ लोक सभा के चुने हुए प्रतिनिधि अगड़ी जातियों के हैं! जी हाँ यही सच है!
अगर भारत के जनसँख्या का आंकलन करें तो अगड़ी जातियों की संख्या भारत के पुरे जनसँख्या के १५ से २० % हैं! अगर १५% वाले ४७ प्रतिशत प्रतिनिधित्व लोकसभा में करते हैं तो हम भारत के दूसरे समाज के लोग जैसे दलित, और मुस्लमान का प्रतिनिधित्व कम हो जाता है और हमारा समाज विकास में आगे नहीं आ पाता.
हमारे ऊपर ये इलज़ाम लगाया जाता है कि हम पढ़ते नहीं, आगे बढ़ने की चाह नहीं, लेकिन हक़ीक़त ये है की जहाँ से फैसले लिए जाते वहीँ हम लोग नहीं पहुँच पाते तो हमारा विकास कैसे होगा? हमारे विकास के लिए ज़रूरी है की लोकसभा में हमारे जनसँख्या के हिसाब से लोक सभा में हमारे लोग पहुंचे!
अगर हम आज़ादी के ७० साल बाद भी पिछड़े हैं इसका मतलब है कि कोई कांग्रेसी या भाजपाई हमारे विकास की बात संसद में नहीं करता! इसकी ये भी वजह हो सकती है कि वो हमारे समाज को सही से समझ ही नहीं पा रहा है लेकिन फिर भी प्रतिनिधित्व उसके हाथ में हमने सौंप रखा है! हमें सोचना होगा कि हमारा विकास कैसे हो? विकास की गली संसद से हो कर जाती है!
आरक्षण का हटाना भी ऐसे है जैसे हिरन, कछुआ, घोडा और बकरी के बिच दौड़ने का मुकाबला करवाना और भी ये बताना की हिरन और घोडा मेधावी हैं वहीँ कछुआ और बकरी हारे हुए बेसहाये जानवर हैं और इलज़ाम लगाना कि कछुआ और बकरी विकास के लिए कोशिश ही नहीं करते! हमें भी आरक्षण चाहिए जब तक हम बराबर के मुकाबले के लिए तैयार नहीं हो जाते! और जहाँ आरक्षण है उसको हटाना नहीं चाहिए!
क्षेत्रिए पार्टी क्यों? ये इसलिए ज़रूरी है कि बुनयादी तौर पर कांग्रेस और भाजपा में कोई फ़र्क़ नहीं है! संघ की शाखाएं कांग्रेस के कार्य काल में फली फूलीं और आगे बढ़ीं और गबरू जवान हुईं! कांग्रेस को पता ही नहीं चला कि उसकी अपनी औलाद ऐसी हो जाएगी की लात मारते वक़्त भी ज़रा सा ख्याल नहीं करेगी? ये बात कोंग्रेसिओं को पता था लेकिन पुत्र प्रेम ने संघ से खिलाफ कुछ भी करने से रोका!
देश के लोगों को चाहिए कि कांग्रेस और भाजपा के नूरा कुस्ती से बाहर निकल कर सोंचें! नूरा कुस्ती इसलिए कहा कि कांग्रेस को पता था की २००२ का दंगा राज्य सरकार के इशारे पर हुआ हुआ है, लेकिन १० साल के कांग्रेस सरकार ने मोदी जी के खिलाफ कुछ नहीं किया, यहाँ तक की अपने मारे गए सांसद एहसान ज़ाफ़री के पत्नी से मिलने सोनिया गाँधी आज तक नहीं गयीं और एहसान जाफरी की पत्नी ये लड़ाई अकेले बिना कांग्रेस के लड़ रही हैं! दूसरी बात जब भाजपा २०१४ का चुनाव लड़ रही थी तो वादा किया था कि जगत जीजा रोबर्ट वाड्रा को जेल भेजेगी डी. एल. एफ. घोटाला के सन्दर्भ में. लेकिन आप सब को मालुम है कि भाजपा सरकार ने किसी कोंग्रेसी को जेल नहीं भेजा. तो ये नूरा कुस्ती करते हैं और हम इनमें उलझे हुए हैं.
ये भी बात बड़े मज़े की है कि अचानक से कोई राष्ट्रवादी, सत्ता देखते ही कांग्रेसी कैसे बन जाता है? जैसे सिध्धू जी को देखा की वो भाजपा से कांग्रेस ज्वाइन कर लिए! वही आदमी जो आपके लिए कल भाजपा में रह कर क़ानून बनता था अब कांग्रेस में आके बनाएगा। उसकी अपनी सोंच, अर्थवादी से समाजवादी, अचानक से कैसे बन जाती है? सोंचने की बात है. ये दोनों पार्टी हम लोगों को नूरा कुस्ती में उलझाए हुए हैं!
किसी एक पार्टी को पूरा बहुमत दे कर सरकार तो स्थायी बन जाती है, लेकिन मोदी जी की स्थायी सरकार से फ़ायदा किसको होता है? PayTM को, अम्बानी जी को, अदानी जी को, कि बिना रोक टोक ५ साल देश की जनता को खूब लूटें! और ये हो भी रहा है, आम जनता पेट्रोल के दाम बढ़ने से परेशान है लेकिन पेट्रोल बेचने और टैक्स लेने वालों के मज़े ही मज़े हैं! बैंक राज नेताओं को लोन दे रही है और राज नेता उसका एन. पी. ए, करवा कर माफ़ कर रहे हैं, जनता बेचारी लूटी जा रही है, त्राहि त्राहि मची है, जेब में पैसे ठहरते नहीं!
और क्षेत्रिए पार्टियां इसलिए भी अहम् हैं कि गठबंधन की सरकार रहेगी तो राजनेताओं को डर रहेगा, और जनता का डर जब तक पॉलिटिशियन में नहीं हो तो वो भाजपा के नेता के तरह किसान / अन्नदाता को गाली देने लगता है! ये बात कितनी असभ्य है जिसकी कल्पना नहीं किया जा सकता!
तो हमें चाहिए कि कांग्रेस और भाजपा को छोड़ कर किसी भी छेत्रिय दल को वोट डालें, कम्युनिस्ट पार्टी के लोग दाल बदल नहीं करते हैं, उनपर विश्वास किया जा सकता है, ये कहते हुए कि संविधान में मुलभुत मौलिक अधिकारों का जो प्रावधान है उसमें कोई परिवर्तन नहीं करेंगे (जैसा की भाजपा कर रही है), चाहे वो धर्म को अपनाने का या उसको आगे बढ़ने का अधिकार हो! त्रिपुरा में माणिक्य सरकार ने ईमानदारी का नया साबुत पेश किया। एक ईमानदार छवि का नेता जो आपकी बात करता हो जिसको आप जानते हों उसको चुनें, नहीं तो भाजपा में सबसे ज़्यादह क्रिमिनल / अपराधी छवि के लोग हैं और कांग्रेस उनसे थोड़े ही पीछे है!
क्षेत्रिए पार्टियों को वोट दें और लोकतंत्र को मजबूत करें !
http://indianexpress.com/article/opinion/columns/the-representation-gap-2/
अगर भारत की संघिये ढांचे पर नज़र डालें तो ये पता चलता है कि भारत की पूरी शक्ति संसद में निहित है! अगर आप २०१४ के आम चुनाव पर प्रतिनिधित्व जाती के आधार पर देखें तो पता चलता है कि भारत के संसद में ४७ प्रतिशत से ज़्यादह लोकसभा के प्रतिनिधि अगड़ी जातियों से आते हैं! मतलब ५४३ में से २५७ लोक सभा के चुने हुए प्रतिनिधि अगड़ी जातियों के हैं! जी हाँ यही सच है!
अगर भारत के जनसँख्या का आंकलन करें तो अगड़ी जातियों की संख्या भारत के पुरे जनसँख्या के १५ से २० % हैं! अगर १५% वाले ४७ प्रतिशत प्रतिनिधित्व लोकसभा में करते हैं तो हम भारत के दूसरे समाज के लोग जैसे दलित, और मुस्लमान का प्रतिनिधित्व कम हो जाता है और हमारा समाज विकास में आगे नहीं आ पाता.
हमारे ऊपर ये इलज़ाम लगाया जाता है कि हम पढ़ते नहीं, आगे बढ़ने की चाह नहीं, लेकिन हक़ीक़त ये है की जहाँ से फैसले लिए जाते वहीँ हम लोग नहीं पहुँच पाते तो हमारा विकास कैसे होगा? हमारे विकास के लिए ज़रूरी है की लोकसभा में हमारे जनसँख्या के हिसाब से लोक सभा में हमारे लोग पहुंचे!
अगर हम आज़ादी के ७० साल बाद भी पिछड़े हैं इसका मतलब है कि कोई कांग्रेसी या भाजपाई हमारे विकास की बात संसद में नहीं करता! इसकी ये भी वजह हो सकती है कि वो हमारे समाज को सही से समझ ही नहीं पा रहा है लेकिन फिर भी प्रतिनिधित्व उसके हाथ में हमने सौंप रखा है! हमें सोचना होगा कि हमारा विकास कैसे हो? विकास की गली संसद से हो कर जाती है!
आरक्षण का हटाना भी ऐसे है जैसे हिरन, कछुआ, घोडा और बकरी के बिच दौड़ने का मुकाबला करवाना और भी ये बताना की हिरन और घोडा मेधावी हैं वहीँ कछुआ और बकरी हारे हुए बेसहाये जानवर हैं और इलज़ाम लगाना कि कछुआ और बकरी विकास के लिए कोशिश ही नहीं करते! हमें भी आरक्षण चाहिए जब तक हम बराबर के मुकाबले के लिए तैयार नहीं हो जाते! और जहाँ आरक्षण है उसको हटाना नहीं चाहिए!
क्षेत्रिए पार्टी क्यों? ये इसलिए ज़रूरी है कि बुनयादी तौर पर कांग्रेस और भाजपा में कोई फ़र्क़ नहीं है! संघ की शाखाएं कांग्रेस के कार्य काल में फली फूलीं और आगे बढ़ीं और गबरू जवान हुईं! कांग्रेस को पता ही नहीं चला कि उसकी अपनी औलाद ऐसी हो जाएगी की लात मारते वक़्त भी ज़रा सा ख्याल नहीं करेगी? ये बात कोंग्रेसिओं को पता था लेकिन पुत्र प्रेम ने संघ से खिलाफ कुछ भी करने से रोका!
देश के लोगों को चाहिए कि कांग्रेस और भाजपा के नूरा कुस्ती से बाहर निकल कर सोंचें! नूरा कुस्ती इसलिए कहा कि कांग्रेस को पता था की २००२ का दंगा राज्य सरकार के इशारे पर हुआ हुआ है, लेकिन १० साल के कांग्रेस सरकार ने मोदी जी के खिलाफ कुछ नहीं किया, यहाँ तक की अपने मारे गए सांसद एहसान ज़ाफ़री के पत्नी से मिलने सोनिया गाँधी आज तक नहीं गयीं और एहसान जाफरी की पत्नी ये लड़ाई अकेले बिना कांग्रेस के लड़ रही हैं! दूसरी बात जब भाजपा २०१४ का चुनाव लड़ रही थी तो वादा किया था कि जगत जीजा रोबर्ट वाड्रा को जेल भेजेगी डी. एल. एफ. घोटाला के सन्दर्भ में. लेकिन आप सब को मालुम है कि भाजपा सरकार ने किसी कोंग्रेसी को जेल नहीं भेजा. तो ये नूरा कुस्ती करते हैं और हम इनमें उलझे हुए हैं.
ये भी बात बड़े मज़े की है कि अचानक से कोई राष्ट्रवादी, सत्ता देखते ही कांग्रेसी कैसे बन जाता है? जैसे सिध्धू जी को देखा की वो भाजपा से कांग्रेस ज्वाइन कर लिए! वही आदमी जो आपके लिए कल भाजपा में रह कर क़ानून बनता था अब कांग्रेस में आके बनाएगा। उसकी अपनी सोंच, अर्थवादी से समाजवादी, अचानक से कैसे बन जाती है? सोंचने की बात है. ये दोनों पार्टी हम लोगों को नूरा कुस्ती में उलझाए हुए हैं!
किसी एक पार्टी को पूरा बहुमत दे कर सरकार तो स्थायी बन जाती है, लेकिन मोदी जी की स्थायी सरकार से फ़ायदा किसको होता है? PayTM को, अम्बानी जी को, अदानी जी को, कि बिना रोक टोक ५ साल देश की जनता को खूब लूटें! और ये हो भी रहा है, आम जनता पेट्रोल के दाम बढ़ने से परेशान है लेकिन पेट्रोल बेचने और टैक्स लेने वालों के मज़े ही मज़े हैं! बैंक राज नेताओं को लोन दे रही है और राज नेता उसका एन. पी. ए, करवा कर माफ़ कर रहे हैं, जनता बेचारी लूटी जा रही है, त्राहि त्राहि मची है, जेब में पैसे ठहरते नहीं!
और क्षेत्रिए पार्टियां इसलिए भी अहम् हैं कि गठबंधन की सरकार रहेगी तो राजनेताओं को डर रहेगा, और जनता का डर जब तक पॉलिटिशियन में नहीं हो तो वो भाजपा के नेता के तरह किसान / अन्नदाता को गाली देने लगता है! ये बात कितनी असभ्य है जिसकी कल्पना नहीं किया जा सकता!
तो हमें चाहिए कि कांग्रेस और भाजपा को छोड़ कर किसी भी छेत्रिय दल को वोट डालें, कम्युनिस्ट पार्टी के लोग दाल बदल नहीं करते हैं, उनपर विश्वास किया जा सकता है, ये कहते हुए कि संविधान में मुलभुत मौलिक अधिकारों का जो प्रावधान है उसमें कोई परिवर्तन नहीं करेंगे (जैसा की भाजपा कर रही है), चाहे वो धर्म को अपनाने का या उसको आगे बढ़ने का अधिकार हो! त्रिपुरा में माणिक्य सरकार ने ईमानदारी का नया साबुत पेश किया। एक ईमानदार छवि का नेता जो आपकी बात करता हो जिसको आप जानते हों उसको चुनें, नहीं तो भाजपा में सबसे ज़्यादह क्रिमिनल / अपराधी छवि के लोग हैं और कांग्रेस उनसे थोड़े ही पीछे है!
क्षेत्रिए पार्टियों को वोट दें और लोकतंत्र को मजबूत करें !
http://indianexpress.com/article/opinion/columns/the-representation-gap-2/
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