Thursday, May 31, 2018

Religious Fundamentalism and Hindrance to Economic Growth

An Article By: Kaushik BasuChief Economist, The World Bank

This is what you need to know about Bangladesh's remarkable economic rise

As a result of progressive social policies and a bit of historical luck, Bangladesh has gone from being one of the poorest countries in South Asia to an aspiring "tiger" economy. But can it avoid the risk factors that have derailed dynamic economies throughout history?

For example, a thousand years ago, the Arab caliphates ruled over regions of great economic dynamism, and cities like Damascus and Baghdad were global hubs of culture, research, and innovation. That golden era ended when religious fundamentalism took root and began to spread. Since then, a nostalgic pride in the past has substituted for bold new pursuits in the present.

Pakistan’s history tells a similar tale. In its early years, Pakistan’s economy performed moderately well, with per capita income well above India’s. And it was no coincidence that during this time, cities like Lahore were multicultural centers of art and literature. But then came military rule, restrictions on individual freedom, and Islamic fundamentalist groups erecting walls against openness. By 2005, India surpassed Pakistan in terms of per capita income, and it has since gained a substantial lead.

But this is not about any particular religion. 

India is a vibrant, secular democracy that was growing at a remarkable annual rate of over 8% until a few years ago. Today, Hindu fundamentalist groups that discriminate against minorities and women, and that are working to thwart scientific research and higher education, are threatening its gains. Likewise, Portugal’s heyday of global power in the fifteenth and sixteenth centuries passed quickly when Christian fanaticism became the empire’s driving political force.

As these examples demonstrate, Bangladesh needs to be vigilant about the risks posed by fundamentalism. Given Prime Minister Sheikh Hasina’s deep commitment to addressing these risks, there is reason to hope for success. In that case, Bangladesh will be on a path that would have been unimaginable just two decades ago: toward becoming an Asian success story.

Fundamentalism is like going back in the development of the human index and have antagonistic behaviors for a holistic development of a nation where all citizen enjoy the fruit of development and being progressive based on scientific development.

The Indian progressive Hindus and Muslims must work together to save the Indian economy being not ruined through rise of saffron fundamentalism.   

For complete article by Kaushik Basu follow the below link.
https://www.weforum.org/agenda/2018/04/why-is-bangladesh-booming

Tuesday, May 29, 2018

अल्पसंख्यक और दलित क्षेत्रिए पार्टियों को वोट दें!

अल्पसंख्यक और दलित क्षेत्रिए पार्टियों को वोट दें!

अगर भारत की संघिये ढांचे पर नज़र डालें तो ये पता चलता है कि भारत की पूरी शक्ति संसद में निहित है! अगर आप २०१४ के आम चुनाव पर प्रतिनिधित्व जाती के आधार पर देखें तो पता चलता है कि भारत के संसद में ४७ प्रतिशत से ज़्यादह लोकसभा के प्रतिनिधि अगड़ी जातियों से आते हैं! मतलब ५४३ में से २५७ लोक सभा के चुने हुए प्रतिनिधि अगड़ी जातियों के हैं! जी हाँ यही सच है!

अगर भारत के जनसँख्या का आंकलन करें तो अगड़ी जातियों की संख्या भारत के पुरे जनसँख्या के १५ से २० % हैं! अगर १५% वाले ४७ प्रतिशत प्रतिनिधित्व लोकसभा में करते हैं तो हम भारत के दूसरे समाज के लोग जैसे दलित, और मुस्लमान का प्रतिनिधित्व कम हो जाता है और हमारा समाज विकास में आगे नहीं आ पाता.

हमारे ऊपर ये इलज़ाम लगाया जाता है कि हम पढ़ते नहीं, आगे बढ़ने की चाह नहीं, लेकिन हक़ीक़त ये है की जहाँ से फैसले लिए जाते वहीँ हम लोग नहीं पहुँच पाते तो हमारा विकास कैसे होगा? हमारे विकास के लिए ज़रूरी है की लोकसभा में हमारे जनसँख्या के हिसाब से लोक सभा में हमारे लोग पहुंचे!

अगर हम आज़ादी के ७० साल बाद भी पिछड़े हैं इसका मतलब है कि कोई कांग्रेसी या भाजपाई हमारे विकास की बात संसद में नहीं करता! इसकी ये भी वजह हो सकती है कि वो हमारे समाज को सही से समझ ही नहीं पा रहा है लेकिन फिर भी प्रतिनिधित्व उसके हाथ में हमने सौंप रखा है! हमें सोचना होगा कि हमारा विकास कैसे हो? विकास की गली संसद से हो कर जाती है!

आरक्षण का हटाना भी ऐसे है जैसे हिरन, कछुआ, घोडा और बकरी के बिच दौड़ने का मुकाबला करवाना और भी ये बताना की हिरन और घोडा मेधावी हैं वहीँ कछुआ और बकरी हारे हुए बेसहाये जानवर हैं और इलज़ाम लगाना कि कछुआ और बकरी विकास के लिए कोशिश ही नहीं करते! हमें भी आरक्षण चाहिए जब तक हम बराबर के मुकाबले के लिए तैयार नहीं हो जाते! और जहाँ आरक्षण है उसको हटाना नहीं चाहिए!

क्षेत्रिए पार्टी क्यों? ये इसलिए ज़रूरी है कि बुनयादी तौर पर कांग्रेस और भाजपा में कोई फ़र्क़ नहीं है! संघ की शाखाएं कांग्रेस के कार्य काल में फली फूलीं और आगे बढ़ीं और गबरू जवान हुईं! कांग्रेस को पता ही नहीं चला कि उसकी अपनी औलाद ऐसी हो जाएगी की लात मारते वक़्त भी ज़रा सा ख्याल नहीं करेगी? ये बात कोंग्रेसिओं को पता था लेकिन पुत्र प्रेम ने संघ से खिलाफ कुछ भी करने से रोका!

देश के लोगों को चाहिए कि कांग्रेस और भाजपा के नूरा कुस्ती से बाहर निकल कर सोंचें! नूरा कुस्ती इसलिए कहा कि कांग्रेस को पता था की २००२ का दंगा राज्य सरकार के इशारे पर हुआ हुआ है, लेकिन १० साल के कांग्रेस सरकार ने मोदी जी के खिलाफ कुछ नहीं किया, यहाँ तक की अपने मारे गए सांसद एहसान ज़ाफ़री के पत्नी से मिलने सोनिया गाँधी आज तक नहीं गयीं और एहसान जाफरी की पत्नी ये लड़ाई अकेले बिना कांग्रेस के लड़ रही हैं! दूसरी बात जब भाजपा २०१४ का चुनाव लड़ रही थी तो वादा किया था कि जगत जीजा रोबर्ट वाड्रा को जेल भेजेगी डी. एल. एफ. घोटाला के सन्दर्भ में. लेकिन आप सब को मालुम है कि भाजपा सरकार ने किसी कोंग्रेसी को जेल नहीं भेजा. तो ये नूरा कुस्ती करते हैं और हम इनमें उलझे हुए हैं.

ये भी बात बड़े मज़े की है कि अचानक से कोई राष्ट्रवादी, सत्ता देखते ही कांग्रेसी कैसे बन जाता है? जैसे सिध्धू जी को देखा की वो भाजपा से कांग्रेस ज्वाइन कर लिए! वही आदमी जो आपके लिए कल भाजपा में रह कर क़ानून बनता था अब कांग्रेस में आके बनाएगा। उसकी अपनी सोंच, अर्थवादी से समाजवादी, अचानक से कैसे बन जाती है? सोंचने की बात है. ये दोनों पार्टी हम लोगों को नूरा कुस्ती में उलझाए हुए हैं!

किसी एक पार्टी को पूरा बहुमत दे कर सरकार तो स्थायी बन जाती है, लेकिन मोदी जी की स्थायी सरकार से फ़ायदा किसको होता है? PayTM को, अम्बानी जी को, अदानी जी को, कि बिना रोक टोक ५ साल देश की जनता को खूब लूटें! और ये हो भी रहा है, आम जनता पेट्रोल के दाम बढ़ने से परेशान है लेकिन पेट्रोल बेचने और टैक्स लेने वालों के मज़े ही मज़े हैं! बैंक राज नेताओं को लोन दे रही है और राज नेता उसका एन. पी. ए, करवा कर माफ़ कर रहे हैं, जनता बेचारी लूटी जा रही है, त्राहि त्राहि मची है, जेब में पैसे ठहरते नहीं!

और क्षेत्रिए पार्टियां इसलिए भी अहम् हैं कि गठबंधन की सरकार रहेगी तो राजनेताओं को डर रहेगा, और जनता का डर जब तक पॉलिटिशियन में नहीं हो तो वो भाजपा के नेता के तरह किसान / अन्नदाता को गाली देने लगता है! ये बात कितनी असभ्य है जिसकी कल्पना नहीं किया जा सकता!

तो हमें चाहिए कि कांग्रेस और भाजपा को छोड़ कर किसी भी छेत्रिय दल को वोट डालें, कम्युनिस्ट पार्टी के लोग दाल बदल नहीं करते हैं, उनपर विश्वास किया जा सकता है, ये कहते हुए कि संविधान में मुलभुत मौलिक अधिकारों का जो प्रावधान है उसमें कोई परिवर्तन नहीं करेंगे (जैसा की भाजपा कर रही है), चाहे वो धर्म को अपनाने का या उसको आगे बढ़ने का अधिकार हो! त्रिपुरा में माणिक्य सरकार ने ईमानदारी का नया साबुत पेश किया। एक ईमानदार छवि का नेता जो आपकी बात करता हो जिसको आप जानते हों उसको चुनें, नहीं तो भाजपा में सबसे ज़्यादह क्रिमिनल / अपराधी छवि के लोग हैं और कांग्रेस उनसे थोड़े ही पीछे है!

क्षेत्रिए  पार्टियों को वोट दें और लोकतंत्र को मजबूत करें !



http://indianexpress.com/article/opinion/columns/the-representation-gap-2/





Thursday, May 24, 2018

क्या पूंजीवाद, आतंकवाद का सबसे भयावह चेहरा है?


तूतीकोरिन, तमिलनाडु में हुए पुलिस फायरिंग, ११ लोगों की मौत और मुख्य मंत्री का बयान कि पुलिस ने सेल्फ डिफेन्स में सनिप्पर से गोली चलायी, इस बात को दर्शाता है कि देश की पुलिस अब पूंजीपति लोगों के सुरक्षा के लिए है, आप के सुरक्षा के लिए नहीं!

आप सिर्फ धर्म के नाम पर वोट देने के लिए हैं और एक बार ईस्ट इंडिया कंपनी को भी याद केर लीजिये और साथ में जलिया वाला बाग कांड तो पिक्चर सही सही मालूम पड़ेगी!

ये एक पूंजीवाद का ट्रेलर है, ऐसा ये लोग हर जगह करते हैं, चाहे वो कॉर्पोरेट की नौकरी में आपका १२- १४ घंटा काम करवा के आपको चूसें या फिर माइनिंग करके ज़मीन चूसें। और जो लोग अपनी ज़मीन इनको चूसने के लिए न दें तो उनको पुलिस के मदद से मरवा दें, या सर्कार से कानून बनवा कर आपकी ज़मीन अधिग्रहित कर लें!

पूंजीवादी सरकार का काम ही है चूसना! चाहे वो रेल का किराया बढ़ा कर हो, या नोटेबंदी हो या बैंकिंग सिस्टम में आपके अपने ट्रांज़ैक्शन पर लेवि हो, ये सब आपको चूसने के लिए बने हैं!

क्या पूंजीवाद आतंकवाद का सबसे भयावह चेहरा है?

सोंचिये कि आप क्या सिर्फ वोट देने के हैं? कभी जात के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर! लेकिन मज़ा पूंजीपति उठा रहा है बिना वोट किये हुए! उसकी डायरेक्ट सेटिंग रहती है राज नेताओं के साथ, ये जब आपके वोट पर जीतते हैं तो आपको ही मरवाते हैं और पूंजीपतियों की सुरक्षा और बढ़ा देते हैं!

फिर कोई पूंजीपति नीरव मोदी बनकर तो कोई विजय मालया बनकर इस देश को लूट कर अंग्रेज़ों के तरह लंदन भाग जाता है!

सोंचिये, और नहीं भी सोंचेंगे तो क्या, भगवान भरोसे तो आपने अपने देश को वैसे ही छोड़ रखा है! कभी आपको धर्म के नाम पर उलझा के रखा गया तो कभी राष्ट्रवाद के नाम पर! अपने से पूछिए कि क्या मरने वाले राष्ट्रवादी नहीं थे? अगर राष्ट्रवादी थे तो उनको राष्ट्रवादी सरकार ने पूंजीपति के फायदे के लिए क्यों मारा?

Tuesday, May 15, 2018

हिंदुस्तान, पाकिस्तान का ब्यापारिक रिश्ता और मोदी जी..!

जनसत्ता (Jansatta) ने रिपोर्ट किया कि पाकिस्तान के द्वारा भेजी गयी या यूँ कहलें कि नरेंद्र मोदी जी की सरकार के द्वारा आयात का बढ़ावा देना खास तौर से पाकिस्तान के साथ अपने आप में महत्त्वपूर्ण है!

हालाँकि पाकिस्तानी चीनी के खिलाफ महाराष्ट्र में कई राजनीतिक पार्टियों ने मोर्चा खोल दिया है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और एनसीपी कार्यकर्ताओं ने नवी मुंबई में पाकिस्तानी चीनी को तहस-नहस कर दिया। कई बोरियों को फाड़ कर उसमे रखी चीनी ज़मीन पर फेंक दी गईं। महाराष्ट्र की लगभग सभी पार्टियों ने पाकिस्तानी चीनी का विरोध किया है।

हम नरेन्द्रा मोदी जी के इस कदम का समर्थन करते हैं!

एक समय था जब यूरोपियन संघीय देश संघ बनने से पहले आपस में बहोत लड़ाईयां की हैं! जर्मनी, फ्रांस से लड़ा, ब्रिटैन से लड़ा और फिर दूसरे देश भी जो यूरोप के थे आपस में लड़ते रहे! हम सब लोगों को याद है कि पहला और दूसरा विश्व युद्ध यूरोप के देशों के कारण ही हुआ!

एउरोपियन्स ने आपस में लड़ कर ये समझ लिया कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है! इसके बाद क्या था यूरोप के देशों ने सन्धि करना शुरू किया और एक महान संघीय ढांचा जनम हुआ जो यूरोपियन यूनियन कहलाया! आज यूरोपियन यूनियन के सारे देश एक दूसरे साथ बिज़नेस में एंगेज / संलिप्त हो गए! फिर क्या था यूरोप बदलने लगा और दुनिया का कोई भी आदमी एक बार यूरोप का सैर करना चाहता है!

ठीक उसी तरह हिंदुस्तान और पाकिस्तान को बॉर्डर कनफ्लिक्ट को जल्दी ख़त्म करके एक दूसरे के तरफ हाँथ बढ़ाना चाहिए। इससे बहुत सरे निम्नलिखित फायदे होंगे;

  1. आये दिन बॉर्डर पर दोनों देशों के जवान नहीं मरेंगे 
  2. मिलिट्री पर होने वाला खर्च, सिविल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे एजुकेशनल इंस्टीटूशन्स और हेल्थ केयर सिस्टम एस्टब्लिश होंगे 
  3. दोनों देश लड़ेंगे तब हथियार पश्चिमी देशो  खरीदना पड़ेगा तो फायदा पश्चिमी देशो को होगा!
  4. हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश की जन सँख्या करीब करीब पौने दो अरब की है, अगर ये तीनो देश आपस में मिल कर इकनोमिक कार्रीडोर बनाएं और अपने ही लोगों की ज़रूरतों को पूरा केर लें तो इनकी इकॉनमी खुद ही तरक्की करने लगेगी।
अभी कुछ दिन  खबर आयी की नवाज़ शरीफ का निवेश इंडिया में है, किस सेक्टर में है ये मालुम नहीं हो पाया है. मोदी जी की सरकार पाकिस्तान सरकार के साथ काम कर रही है लेकिन ये बात खुल कर सामने नहीं आ रहा है!

हम मोदी जी से मांग करते हैं की बिज़नेस के साथ साथ बॉर्डर के मसले का शांति पूर्ण हल होना चाहिए! और इसके साथ ही हम आपके पाकिस्तान के साथ प्रीत मय कोशिशों की सराहना करते हैं!

आपके इस पहल से हमारे बिज़नेस मेन को यक़ीनन फायदा होगा! अब तो उत्तरी कोरिया और दक्षणी कोरिया भी मिल रहे हैं तो आपका ये पहल बहुत कारगर होगा!

 धन्यवाद!

Saturday, May 12, 2018

दंगा में जान नही, दुकान बचाईए..!

भाजपा और आर. एस. एस. का एक बड़ा अजेंडा है की दलितों को मुसलमानो को सबसे पहले आर्थिक तौर पर तोड़ दो और इनको गुलाम बना दो. इस मनोविज्ञान के लोग पहले ही दलितों को हिंदू बताते हुए उनके साथ ना-इंसाफी किया और इनके बहू बेटिओं के साथ रेप जैसी घटना आम बात हो जैसे. उन्नाओ का रेप केस, रोहित बेमुला का हत्या, कठुआ गॅंग रेप, नजीब का लापता होना और पोलीस का कुछ नही करना, ये सब एक ही बात को दर्शाता है की एक खास तबका सत्ता पर क़ाबिज़ कैसे रहे और दलितों / मुसलमानो और महिलाओं के साथ दुराचार होता रहे, ये इस बात को नॉर्मल बनाते जा रहे हैं! हमें इस दुराचार, अत्याचार के खिलाफ उठ खड़ा हो है! किसी भी दंगा में दुकान जलना इनके चरित्र का हिस्सा बन गया है की तुम भीख माँगने पर मजबूर हो जाओ और ये तुम्हें दुत्कार्ते रहें

2002 में गुजरात के मुस्लिम विरोधी दंगा में इन्हों ने दुकान जलाया. यही काम 2018 के रानीगंज बंगाल मे हुआ. राम नौमी के बिहार दंगा में भी मुसलमानो के दुकान जलाए गये, और यही काम आज कल के औरंगाबाद दंगा में हुआ, दंगा करने वालों ने वहाँ भी दुकान जलाया (1000 Crore ka Nuksan).

कभी आपने सोन्चा है कि आपके दुकान क्यों जलाए जाते हैं? इसके बावजूद के आप भारत के आर्थिक विकास में मदद कर रहे हैं, आप जी. एस. टी के साथ साथ दूसरे टॅक्स देते हैं, और ये भी देखा गया है की पोलीस दंगा करने वालों का साथ भी देती है, जबकि पोलीस हमारे टॅक्स के पैसे पर पलटी भी है लेकिन हमारी सुरक्षा नही करती, आख़िर क्यौन?

इसका हल है की आप सियासत समझें, दंगा में जान नही, दुकान बचाईए! एक जान अगर चली गयी और दुकान बच गया तो घर के बाकी लोग दुकान संभाल के अपनी ज़िंदगी चला सकते हैं अच्छे से, लेकिन अगर अगर आपने जान बचाया और दुकान जलने दिया तो सारी परिवार के लोग आपके साथ साथ भुखमरी और मजबूरी में जीना उनकी क़िस्मत बन जाएगी! दलितों को ज़बरदस्ती उनके पॅट्रिक काम में डाला गया है और दलित जब हिंदू भी हैं तो उनके साथ ये अगड़ी जाती के लोग को रहम दिली नही करते तो आप का विश्वास और मान्यतायें ही अलग हैं!

खुदा ने आज तक उस क़ौम की हालत नही बदली,
जिससे खुद फ़िक्र नही हो अपने आप बदलने का!

मैं तो कहता हूँ कि आप धर्म पर पक्का अमल करें लेकिन धर्म की हिफ़ाज़त नही करें! याद करें की अब्दुल मुताल्लिब ने अब्रहा से अपने उँट आपस माँगा था, इस पर अब्रहा परेशान हो गया और बोला की हम तो काबा को गिराने के लिए आए हैं, वो अब्दुल मुताल्लिब का जवाब कि उँट मेरा है इसलिए तुम मेरा उँट वापस कर दो, काबा अल्लाह का हैं तो वो उसकी हिफ़ाज़त कर लेगा! और फिर अबाबील ने हाथी वालो को भूसा बना दिया! धर्म अल्लाह का है तो वो बचा लेगा, लेकिन जान, माल हमारा है, और जब हम अल्लाह को दान कर देंगे तब अल्लाह का होगा! तब तक अपने मकान और दुकान की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी आपकी अपनी है नही की अल्लाह की.

ये एक पूरी की पूरी राजनैतिक मसला है लेकिन चोला धर्म की पहन कर आया है! अगर बात सिर्फ़ हिंदू हित की होती तो जड्ज लोया को क्यों मारते? गौरी लंकेश को क्यों मरते? प्रवीण तोगड़िया पर जान लेवा हमला क्यों करवाते? गुरमीत कौर को ट्रोल क्यौन करते? 

पूंजीवादी ताक़तें, धर्म का चोला पहन कर आपको परेशान कर रही हैं, लूट रही हैं, समाजवाद को तोड़ा जा रहा है, इस्लाम समाजवाद की सिख देता है और भाईचारा का.

हर ज़ुल्म के टक्कर, संघर्स हमारा नारा है!


भाजपा के अजेंडा के अनुकूल काम करता हुआ एक भाजपा का कार्यकर्ता, ये भूल गया है कि अब विकास की बात करनी चाहिए या नही!