नीचे दिया गया सवाल बहुत सारे लोगों से पूछा गया,
क्या वजह है की मुसलमान समाज, कोई नयी चीज़ जैसे मोबाइल, कार, बुलेट ट्रेन, जहाज़, मोटर साइकल या इसी तरह कोई दूसरी चीज़ जैसे व्हातसपप, फ़ेसबुक या ट्विटर का इज़ाद नही करता? दूसरे क़ौम के लोगों के ज़रिए बनाए गये समान को इस्तेमाल करता है और उपभोगता बन गया है? आपकी राय में क्या वजहें हो सकती हैं और इसका हल क्या है?
एक हमारे मित्र के द्वारा ये जवाब आया...
1400 साल से आज तक मुसलमानो की सोच चटाई और मिट्टी के लोटे से बाहर नहीं आई और दुनिया कम्प्यूटर ऐज से होती हुई #Mars (मंगल) पर खड़ी है । किस ने हैक कर लिए इस फ़ातेह कौम के दिमाग़ को, जहाँ सोचने के लिए सिर्फ टखनो से ऊँचा पाजामा, एक मुश्त चार ऊंगल दाढ़ी। बाकी सारी दुनिया दोज़ख के कुत्तोँ का कारखाना है और उन्ही दोज़ख के कुत्तों की टेक्नोलॉजी ने सारी दुनिया को अपना ग़ुलाम बना रखा है।
ज़मीन के नीचे क्या होगा यह आपको मालूम है । ज़मीन के ऊपर आसमानों की पूरी जानकारी आपके पास है। मगर जो दुनिया आप के लिए तख़लीक़ की गयी हैं, उस के लिए आप जाहिल लठ हो! दूसरी कौमे ज़मीन से यूरेनियम निकाल रही है और उसका इस्तेमाल जानती है आप सिर्फ ज़मज़म के फायदे गिना रहे हो।
दूसरी कौमों ने दुनिया की बक़ा के लिए हज़ारों ज़बानों में किताबें लिखी और पढ़ीं। आपने क़ुरान भी पढ़ा नहीं सिर्फ हिलकर रटा। दूसरी कौमों ने आने वाली नस्लों के लिए हज़ारों यूनिवर्सिटीयाँ कायम की। आप नकली रसीदें छपवा कर मदरसों के नाम पर मांगते रहे। दूसरी कौमों ने लाखों अस्पताल कायम किए, आप सिर्फ़ दुआओं में शिफाए, कामला, आजला चिल्लाते रहे। दूसरी कौमों ने आवाज़ से भी तेज़ चलने वाली सवारियाँ ईजाद कर लीं, आप रफरफ और फरिशताऐ मलेकुल मौत की रफ़्तार बयान करते रहे। इस खूबसूरत दुनिया मे आप की कोई हिस्सेदारी क्यों नहीं? आप कहते है बैंकिंग सिस्टम आपने दिया फिर आपका विश्व बैंक में क्या है? यह बैंक आप के यहाँ क्यों नहीं? आप कहते है प्रेस आपकी ईजाद है, फिर भी आप किताबों से ख़ाली हैं सिवाए मज़हबी किताबों के। यह एक कड़वी सच्चाई है।
अगर कुछ इस्लामी मुल्कों में पेट्रोल, सोना, खजूर, जैतून पैदा ना हो रहा होता तो आज भी आप तंबू लगाकर रेत के टीलों में ख़ाना बदोशी कर रहे होते और जिन चंद इस्लामी देशों पर आप घमंड करते है तो वह भी अमेरिका के ऐजेंडों पर काम कर रहे हैं उनके ऐश व आराम, चमक-दमक, अय्याशी, बादशाही सिर्फ अमेरिका पर टिकी है। वरना ईराक व सीरिया बनने मे तीन दिन से ज्यादा नहीं लगेंगे, क्योंकि वह भी आप की सोच के जनक हैं। ना एयरफोर्स, ना आर्मी, ना इत्तेफाक, ना इत्तेहाद बस बड़े-बड़े हरम, पांच-पांच बीवियाँ, दस-दस रखैलें, सोने के जहाज़, सोने की मरसिटीज़, पालतू शेर, ऐश व अय्याशी! और आप ईसाइयों और यहूदियों के बनाए हथियार और टेक्नोलॉजी से पूरी दुनिया में ईस्लाम की हुकूमत लाने की सोच रहे हैं। कहाँ जा रहे हैं आप? क्या दुनिया में पनपने की यही बातें है। इतनी बड़ी कौम की बदहवासी की सिर्फ एक ही वजह है और वह है आप की सोच पर कुछ खुद साख़्ता मज़हबी ठेकेदार ज़हरीले साँप की तरह कुंडली मारे बैठे हैं। जहाँ आप की सोच बाहर निकली इनका ज़हरीला फ़न वार कर देता है। आप दूसरों की कायम करदा सोच के ग़ुलाम हैं। आपकी अपनी सोच लॉक कर दी गयी है!
अब भी वक़्त है अपने रब की नेमतों को पहचानो। नियत से ज़्यादा ज़हनियत बदलो।
एएमयू अलीगढ़ संयुक्त अरब अमीरात पूर्व छात्र फोरम (AMU ALUMANI_UAE_FORUM)
क्या वजह है की मुसलमान समाज, कोई नयी चीज़ जैसे मोबाइल, कार, बुलेट ट्रेन, जहाज़, मोटर साइकल या इसी तरह कोई दूसरी चीज़ जैसे व्हातसपप, फ़ेसबुक या ट्विटर का इज़ाद नही करता? दूसरे क़ौम के लोगों के ज़रिए बनाए गये समान को इस्तेमाल करता है और उपभोगता बन गया है? आपकी राय में क्या वजहें हो सकती हैं और इसका हल क्या है?
एक हमारे मित्र के द्वारा ये जवाब आया...
1400 साल से आज तक मुसलमानो की सोच चटाई और मिट्टी के लोटे से बाहर नहीं आई और दुनिया कम्प्यूटर ऐज से होती हुई #Mars (मंगल) पर खड़ी है । किस ने हैक कर लिए इस फ़ातेह कौम के दिमाग़ को, जहाँ सोचने के लिए सिर्फ टखनो से ऊँचा पाजामा, एक मुश्त चार ऊंगल दाढ़ी। बाकी सारी दुनिया दोज़ख के कुत्तोँ का कारखाना है और उन्ही दोज़ख के कुत्तों की टेक्नोलॉजी ने सारी दुनिया को अपना ग़ुलाम बना रखा है।
ज़मीन के नीचे क्या होगा यह आपको मालूम है । ज़मीन के ऊपर आसमानों की पूरी जानकारी आपके पास है। मगर जो दुनिया आप के लिए तख़लीक़ की गयी हैं, उस के लिए आप जाहिल लठ हो! दूसरी कौमे ज़मीन से यूरेनियम निकाल रही है और उसका इस्तेमाल जानती है आप सिर्फ ज़मज़म के फायदे गिना रहे हो।
दूसरी कौमों ने दुनिया की बक़ा के लिए हज़ारों ज़बानों में किताबें लिखी और पढ़ीं। आपने क़ुरान भी पढ़ा नहीं सिर्फ हिलकर रटा। दूसरी कौमों ने आने वाली नस्लों के लिए हज़ारों यूनिवर्सिटीयाँ कायम की। आप नकली रसीदें छपवा कर मदरसों के नाम पर मांगते रहे। दूसरी कौमों ने लाखों अस्पताल कायम किए, आप सिर्फ़ दुआओं में शिफाए, कामला, आजला चिल्लाते रहे। दूसरी कौमों ने आवाज़ से भी तेज़ चलने वाली सवारियाँ ईजाद कर लीं, आप रफरफ और फरिशताऐ मलेकुल मौत की रफ़्तार बयान करते रहे। इस खूबसूरत दुनिया मे आप की कोई हिस्सेदारी क्यों नहीं? आप कहते है बैंकिंग सिस्टम आपने दिया फिर आपका विश्व बैंक में क्या है? यह बैंक आप के यहाँ क्यों नहीं? आप कहते है प्रेस आपकी ईजाद है, फिर भी आप किताबों से ख़ाली हैं सिवाए मज़हबी किताबों के। यह एक कड़वी सच्चाई है।
अगर कुछ इस्लामी मुल्कों में पेट्रोल, सोना, खजूर, जैतून पैदा ना हो रहा होता तो आज भी आप तंबू लगाकर रेत के टीलों में ख़ाना बदोशी कर रहे होते और जिन चंद इस्लामी देशों पर आप घमंड करते है तो वह भी अमेरिका के ऐजेंडों पर काम कर रहे हैं उनके ऐश व आराम, चमक-दमक, अय्याशी, बादशाही सिर्फ अमेरिका पर टिकी है। वरना ईराक व सीरिया बनने मे तीन दिन से ज्यादा नहीं लगेंगे, क्योंकि वह भी आप की सोच के जनक हैं। ना एयरफोर्स, ना आर्मी, ना इत्तेफाक, ना इत्तेहाद बस बड़े-बड़े हरम, पांच-पांच बीवियाँ, दस-दस रखैलें, सोने के जहाज़, सोने की मरसिटीज़, पालतू शेर, ऐश व अय्याशी! और आप ईसाइयों और यहूदियों के बनाए हथियार और टेक्नोलॉजी से पूरी दुनिया में ईस्लाम की हुकूमत लाने की सोच रहे हैं। कहाँ जा रहे हैं आप? क्या दुनिया में पनपने की यही बातें है। इतनी बड़ी कौम की बदहवासी की सिर्फ एक ही वजह है और वह है आप की सोच पर कुछ खुद साख़्ता मज़हबी ठेकेदार ज़हरीले साँप की तरह कुंडली मारे बैठे हैं। जहाँ आप की सोच बाहर निकली इनका ज़हरीला फ़न वार कर देता है। आप दूसरों की कायम करदा सोच के ग़ुलाम हैं। आपकी अपनी सोच लॉक कर दी गयी है!
अब भी वक़्त है अपने रब की नेमतों को पहचानो। नियत से ज़्यादा ज़हनियत बदलो।
एएमयू अलीगढ़ संयुक्त अरब अमीरात पूर्व छात्र फोरम (AMU ALUMANI_UAE_FORUM)
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