अब्दुल्लाह
और जुंमन मियाँ की कहानी और
हिन्दुस्तान की सियासत.
बंगाल
से कम्यूनिस्ट गये, ममता आयीं (या लाई गयीं
नही मालूम), संघी बढ़ने लगे जैसे कुकुर मुत्ते, फिर 10 साल में इतने बढ़े की रानी गंज
में मुसलमानो के दुकानो को
जला दिया गया, इमाम का बेटा मरा
सभी को मालूम. इन
सबके बावजूद, ममता सेक्युलर जैसे की नीतीश सेक्युलर.
जब बात सेक्युलर की ही है
तो कम्यूनिस्ट पार्टी से ज़यादा कौन
सेक्युलर है!
अब्दुल्लाह
भी सेक्युलर है और सेक्युलर
अलाइयेन्स करता लेकिन अपने लोगों को कभी राम
नौमी के जुलूस मे
मरवा देता तो कभी रानी
गंज आसंसूल के दंगों में
ममता के हाथों मरवाता
है!
अब्दुल्लाह
केरला में तो कम्यूनिस्ट पार्टी
का सपोर्ट करता और वहाँ मजबूत
भी है मा शा
अल्लाह लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल आते आते बेचारा थक जाता है
और अपनी अक़्ल्ल से अपने ही
लोगों को मरवाता है
और बोलता है की वो
जुंमन मिया से मोहब्बत भी
करता है लेकिन मुलायम
की मदद से कभी जुंमन
को यू. पी के मुज़फ़्फ़र
नगर में मरवाता तो कभी कॉंग्रेस
की मदद से असम मे
मरवाता. फिर कलमा पढ़ते हुए
अब्दुल्लाह
किसी नकली सेक्युलर जैसे ममता, मुलायम, नीतीश, राहुल से सौदा कर
लेता है जुंमन मिया
के जान का. ये खेल अब्दुल्लाह
बहुत पहले से कर रहा
है, जुंमन बेचारा इसको अल्लाह की मर्ज़ी समझ
के सब्र कर लेता...
और
ये कहानी जुंमन के क़त्लेआम वैसे
ही चल रही है
जैसे हाबील और काबिल की.
अब्दुल्लाह अपने भाई जुंमन को मारते जा
रहा है जैसे काबिल
नेअपने छोटे भाई हाबील के साथ किया
था. जहाँ मुसलमान को बचाना है
वहाँ अब्दुल्लाह इस्लाम बचाने की बात करता
है ये जानते हुए
की इस्लाम को अल्लाह ने
लौह ए महफुज़ में
रखा है और उसका
कोई कुछ नही बिगाड़ सकता. अफ़सोस, अब्दुल्लाह जान का सौदा करता
है और अपने को
जुंमन का सबसे बड़ा
हमदर्द भी कहता है
और जुंमन भी अब्दुल्लाह के बातों को सही समझता है!!
अब्दुल्लाह
ने इतना कन्फ्यूज़ करके रखा हुआ है की जुंमन
सियासत और धर्म मे
फ़र्क़ ही नही समझता.
जुंमन का ईमान जो
भाप के तरह उड़वाने
की बात अब्दुल्लाह कर जाता है
फिर बेचारा जुंमन क्या करे? उसने क़ुरान भी नही पढ़ा
जिससे वो जाने की
उसके साथ अब्दुल्लाह इंसाफ़ कर रहा है
या नही!
पता
नही हम मे से
कौन अब्दुल्लाह है और कौन
जुंमन...!
जाने
मेरे चमन का, ये अंजाम कियूं
हुआ,
फूलों
का क़त्ले-आम सरेआम कियूं
हुआ।
अपने
सफों में कोई मुनाफ़िक़ ज़रूर है,
वरना
मैं हर मुहाज़ पे
नाक़ाम कियूं हुआ।
(अल्लामा
इक़बाल)
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